पहाड़ों में मिट्टी नहीं गन्ने से तैयार की जाती है लक्ष्मी मां की मूर्ति, जानें क्या है वजह
दिवाली का त्योहार
देश भर में दिवाली का त्योहार मनाया जा रहा है. हालांकि हर जगह ये त्योहार अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है.
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पहाड़ों की दिवाली
पहाड़ों की बात करें तो यहां की दिवाली कुछ अलग ही तरीके से मनाई जाती है. दीये और फटाखे के अलावा भी काफी कुछ होता है.
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गन्ने से बनी लक्ष्मी मां की पूजा
दिवाली में लक्ष्मी पूजा तो हर जगह होती है. हालांकि पहाड़ों में गन्ने से बनी लक्ष्मी मां की पूजा की जाती है.
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सालों पुरानी परंपरा
सालों से पुरानी यह परंपरा आज भी जीवित है. उत्तराखंड के कुमाऊं अंचल के घर-घर में इस तरह की मूर्ति तैयार की जाती है.
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तीन भागों में गन्ना
इसके लिए गन्ने को तीन भागों में काटा जाता है और कांसे की थाली में चावल रखकर मूर्ति का आकार दिया जाता है.
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मां लक्ष्मी का मुखौटा
इसके अलावा नीबू की मदद से मां लक्ष्मी का मुखौटा तैयार किया जाता है. वहीं खील-बतासे, मिठाई और चावल से मां की पूजा की जाती है.
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गन्ने की पूजा
पुराणों में गन्ने के वृक्ष को काफी शुभ बताया गया है. यही वजह है कि पहाड़ों में शादी समेत सभी शुभ कार्यों पर गन्ने की पूजा की जाती है.
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महालक्ष्मी का नाम गजलक्ष्मी
लोगों का मानना है कि महालक्ष्मी को गजलक्ष्मी भी कहा जाता है. समुद्र मंथन के दौरान हाथियों ने अभिषेक कर के उनका स्वागत किया था.
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महालक्ष्मी की कृपा
वहीं हाथी को गन्ना बेहद पसंद है. इसलिए दिवाली के मौके पर माता रानी की मूर्ति गन्ना से बनाई जाती है. ऐसा करने से महालक्ष्मी की कृपा भी बनी रहती है .
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