Urdu Shayari : आरज़ू है कि तू यहाँ आए,,और फिर उम्र भर न जाए कहीं
बशीर बद्र
न जी भर के देखा न कुछ बात की, बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की
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मिर्ज़ा ग़ालिब
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले, बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
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फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही, नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही
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नासिर काज़मी
आरज़ू है कि तू यहाँ आए,,और फिर उम्र भर न जाए कहीं
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कैफ़ी आज़मी
इंसाँ की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं, दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद
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जौन एलिया
जान-लेवा थीं ख़्वाहिशें वर्ना, वस्ल से इंतिज़ार अच्छा था
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असरार-उल-हक़ मजाज़
मुझ को ये आरज़ू वो उठाएँ नक़ाब ख़ुद, उन को ये इंतिज़ार तक़ाज़ा करे कोई
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