Urdu Shayari: मुद्दआ दूर तक गया लेकिन, आरज़ू लौट कर नहीं आई
अमीन हज़ीं
नुमूद-ए-रंग-ओ-बू ने मार डाला, उसी की आरज़ू ने मार डाला
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अख़्तर अंसारी
रंग ओ बू में डूबे रहते थे हवास,हाए क्या शय थी बहार-ए-आरज़ू
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फ़िगार उन्नावी
किसी से शिकवा-ए-महरूमी-ए-नियाज़ न कर,देख ले कि तिरी आरज़ू तो ख़ाम नहीं
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मोहम्मद दीन तासीर
भी देख कि हम आरज़ू के सहरा में,खिले हुए हैं किसी ज़ख़्म-ए-आरज़ू की तरह
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मुस्तफ़ा ज़ैदी
इक तिलिस्म था क़ुर्बत में उस के उम्र कटी, गले लगा के उसे उस की आरज़ू करते
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बयान मेरठी
लहू टपका किसी की आरज़ू से, हमारी आरज़ू टपकी लहू से
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अब्दुल हमीद अदम
मैं और उस ग़ुंचा-दहन की आरज़ू, आरज़ू की सादगी थी मैं न था
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मुबारक अज़ीमाबादी
किसी की तमन्ना निकलती रही, मिरी आरज़ू हाथ मलती रही
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