Urdu Shayari: ओ आँख चुरा के जाने वाले, हम भी थे कभी तिरी नज़र में
आबरू शाह मुबारक
मैं दर-गुज़रा साहिब-सलामत से भी, ख़ुदा के लिए इतना बरहम न हो
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आबरू शाह मुबारक
तुम्हारे दिल में क्या ना-मेहरबानी आ गई ज़ालिम,कि यूँ फेंका जुदा मुझ से फड़कती मछली को जल सीं
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वहशत रज़ा अली कलकत्वी
वहशत उस बुत ने तग़ाफ़ुल जब किया अपना शिआर,काम ख़ामोशी से मैं ने भी लिया फ़रियाद का
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बेख़ुद देहलवी
पढ़े जाओ बेख़ुद ग़ज़ल पर ग़ज़ल,वो बुत बन गए हैं सुने जाएँगे
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माहिर-उल क़ादरी
सुनाते हो किसे अहवाल माहिर,वहाँ तो मुस्कुराया जा रहा है
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बेख़ुद देहलवी
उन्हें तो सितम का मज़ा पड़ गया है,कहाँ का तजाहुल कहाँ का तग़ाफ़ुल
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