इन फिल्मों से शबाना ने बनाया भारतीय सिनेमा में खास पहचान
भारतीय सिनेमा को नई दिशा
शबाना आजमी ने अपनी बेमिसाल अभिनय शैली से भारतीय सिनेमा को नई दिशा दी. उनकी फिल्में न सिर्फ मनोरंजन करती हैं, बल्कि सामाजिक मुद्दों को भी उजागर करती हैं. आइए, उनकी कुछ ऐतिहासिक फिल्मों पर नजर डालें.
Credit: Social Media
अंकुर (1974)
श्याम बेनेगल की फिल्म अंकुर में शबाना ने लक्ष्मी का किरदार निभाया. एक गांव की महिला, जो शोषण और अन्याय के खिलाफ डटकर मुकाबला करती है, उनकी यह भूमिका दर्शकों के दिलों में गहरी छाप छोड़ती है.
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अर्थ (1982)
महेश भट्ट की अर्थ में शबाना ने पूजा के रूप में विश्वासघात का दर्द झेलकर भी अपने लिए नया रास्ता चुना. उनकी संवेदनशील अभिनय ने हर दर्शक को भावुक कर दिया.
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मासूम (1983)
शेखर कपूर की मासूम में शबाना ने इंदु के किरदार में एक मां की जटिल भावनाओं को जीवंत किया. यह किरदार ममता और संघर्ष का अनूठा संगम था.
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मंडी (1983)
मंडी में शबाना ने रुक्मिणी बाई की भूमिका निभाई, एक वेश्यालय की मालकिन, जिसके किरदार ने समाज की सच्चाई को बेपर्दा किया. उनका दमदार अभिनय आज भी याद किया जाता है.
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स्पर्श (1980)
सई परांजपे की स्पर्श में शबाना ने कविता नामक एक विधवा की भावनाओं को गहराई से उकेरा. उनकी सूक्ष्म अभिनय शैली ने इस किरदार को अमर बना दिया.
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अवतार (1983)
अवतार में शबाना ने राधा के किरदार में एक ऐसी पत्नी को दर्शाया, जो हर मुश्किल में अडिग रहती है. मोहनलाल के साथ उनकी केमिस्ट्री ने फिल्म को और खास बनाया.
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भावना (1984)
भावना में शबाना ने एक परित्यक्त महिला की जिंदगी को इतनी संजीदगी से पेश किया कि उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया. यह किरदार उनकी अभिनय क्षमता का गवाह है.
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निशांत (1975)
श्याम बेनेगल की निशांत में शबाना ने एक ऐसी महिला का किरदार निभाया, जो सामंती व्यवस्था के खिलाफ आवाज बुलंद करती है. उनकी यह भूमिका सामाजिक बदलाव की प्रेरणा बनी.
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स्वामी (1977)
बासु चटर्जी की स्वामी में शबाना ने सौदामिनी के रूप में परंपराओं और निजी इच्छाओं के बीच संतुलन बनाया. उनका यह किरदार दर्शकों के लिए प्रेरणादायक रहा.
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