पड़ा है प्यार में दिल, तो पढ़े मिर्ज़ा ग़ालिब के मोहब्बती शेर
रौनक़
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़, वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है
सादगी
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं
इश्क़
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ग़ालिब, कि लगाए न लगे और बुझाए न बने
क़ुदरत
वो आए घर में हमारे ख़ुदा की क़ुदरत है, कभी हम उन को कभी अपने घर को देखते हैं
वफ़ा
हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद, जो नहीं जानते वफ़ा क्या है
फ़र्क़
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का,
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
निकम्मा
इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया, वर्ना हम भी आदमी थे काम के
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