आमद पे तेरी इत्र ओ चराग़ ओ सुबू न हों...पढ़ें परवीन शाकिर के शेर...


2024/04/29 23:14:26 IST

मेरी मसीहाई

    क्या करे मेरी मसीहाई भी करने वाला, ज़ख़्म ही ये मुझे लगता नहीं भरने वाला

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ख़बर दुश्मनों ने दी होगी,

    नहीं नहीं ये ख़बर दुश्मनों ने दी होगी, वो आए आ के चले भी गए मिले भी नहीं

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शाम की तन्हाई में

    मेरी चादर तो छिनी थी शाम की तन्हाई में, बे-रिदाई को मिरी फिर दे गया तश्हीर कौन

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उड़ा ले गई आँचल मेरा

    ये हवा कैसे उड़ा ले गई आँचल मेरा, यूँ सताने की तो आदत मिरे घनश्याम की थी

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फूल जैसे बच्चों पर

    तितलियाँ पकड़ने में दूर तक निकल जाना, कितना अच्छा लगता है फूल जैसे बच्चों पर

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हर शब सफ़र करते रहे

    जुस्तुजू खोए हुओं की उम्र भर करते रहे, चाँद के हमराह हम हर शब सफ़र करते रहे

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आदाब निभाने ही थे

    रुख़्सत करने के आदाब निभाने ही थे, बंद आँखों से उस को जाता देख लिया है

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