आमद पे तेरी इत्र ओ चराग़ ओ सुबू न हों...पढ़ें परवीन शाकिर के शेर...
मेरी मसीहाई
क्या करे मेरी मसीहाई भी करने वाला, ज़ख़्म ही ये मुझे लगता नहीं भरने वाला
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ख़बर दुश्मनों ने दी होगी,
नहीं नहीं ये ख़बर दुश्मनों ने दी होगी, वो आए आ के चले भी गए मिले भी नहीं
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शाम की तन्हाई में
मेरी चादर तो छिनी थी शाम की तन्हाई में, बे-रिदाई को मिरी फिर दे गया तश्हीर कौन
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उड़ा ले गई आँचल मेरा
ये हवा कैसे उड़ा ले गई आँचल मेरा, यूँ सताने की तो आदत मिरे घनश्याम की थी
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फूल जैसे बच्चों पर
तितलियाँ पकड़ने में दूर तक निकल जाना, कितना अच्छा लगता है फूल जैसे बच्चों पर
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हर शब सफ़र करते रहे
जुस्तुजू खोए हुओं की उम्र भर करते रहे, चाँद के हमराह हम हर शब सफ़र करते रहे
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आदाब निभाने ही थे
रुख़्सत करने के आदाब निभाने ही थे, बंद आँखों से उस को जाता देख लिया है
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