एक ऐसी शख्सियत, जिसने दुनिया को प्रेम और करुणा सिखाई
एक साधारण शुरुआत
26 अगस्त, 1910 को उत्तरी मैसेडोनिया के स्कोप्जे में जन्मीं मैरी टेरेसा बोयाक्सिउ, जिन्हें दुनिया मदर टेरेसा के नाम से जानती है, ने अपने जीवन को मानवता की सेवा में समर्पित किया. उनके पिता की मृत्यु के बाद, मात्र 8 वर्ष की उम्र में उन्होंने जीवन की कठिनाइयों को करीब से देखा.
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मिशनरी बनने की प्रेरणा
12 साल की छोटी सी उम्र में मिशनरियों की कहानियों ने उनके दिल को छुआ. 18 साल की उम्र में, उन्होंने अपने घर को अलविदा कहा और मिशनरी बनने का सपना लेकर आयरलैंड, फिर भारत पहुंचीं. कोलकाता में 1931 से 1948 तक उन्होंने एक स्कूल शिक्षिका के रूप में सेवा की.
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गरीबी ने दिखाई नई राह
कोलकाता की गलियों में गरीबी और दुख को देखकर मदर टेरेसा का मन विचलित हुआ. उन्होंने ठान लिया कि वे समाज के सबसे वंचित लोगों के लिए काम करेंगी. यही वह पल था, जब उनके जीवन का असली मकसद सामने आया.
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मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की स्थापना
7 अक्टूबर, 1950 को मदर टेरेसा ने मिशनरीज़ ऑफ चैरिटीकी नींव रखी. यह संगठन जाति, धर्म या सामाजिक स्थिति से परे, गरीबों, बीमारों और जरूरतमंदों की सेवा के लिए समर्पित था. उनके इस कदम ने लाखों जिंदगियों को रोशनी दी.
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च्चों और जरूरतमंदों का सहारा
बिना किसी आर्थिक संसाधन के, मदर टेरेसा ने झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों के लिए स्कूल और अस्पताल बनाए. उनकी करुणा और मेहनत ने उन लोगों को उम्मीद दी, जो समाज के हाशिए पर थे.
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सम्मान और पहचान
मदर टेरेसा की सेवा को दुनिया ने सलाम किया. 1962 में पद्मश्री, 1969 में जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार, 1980 में भारत रत्न और 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार ने उनके योगदान को अमर बना दिया.
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एक कालजयी विरासत
5 सितंबर, 1997 को मदर टेरेसा इस दुनिया से चली गईं, लेकिन उनकी शिक्षाएं और प्रेम का संदेश आज भी जीवित है. उनकी 28वीं पुण्यतिथि पर, हम उनके द्वारा दिखाए गए दया और सेवा के मार्ग को याद करते हैं.
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प्रेरणा की मशाल
मदर टेरेसा ने सिखाया कि सच्ची सेवा वह है, जो बिना किसी अपेक्षा के की जाए. उनकी जिंदगी हमें यह बताती है कि एक व्यक्ति की करुणा पूरी दुनिया को बदल सकती है.
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