अब हर्फ़-ए-तमन्ना को समाअत न मिलेगी.. पढ़ें पीरज़ादा क़ासिम के शेर..


2024/04/19 23:18:38 IST

आवाज़ में आवाज़ मिलाते ही

    आवाज़ में आवाज़ मिलाते ही रहे हम, रोती ही रही रूह सो गाते ही रहे हम

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ख़्वाब ए तमन्ना की ताबीर

    उस ख़्वाब ए तमन्ना की ताबीर न थी कोई, बस ख़्वाब ए तमन्ना था सो मैंने नहीं देखा

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रुसवाई का मेला था

    रुसवाई का मेला था सो मैंने नहीं देखा, अपना ही तमाशा था सो मैंने नहीं देखा

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सीरत पे सारी गूफ्तगू

    मगर जब आपकी सीरत पे सारी गूफ्तगू हो ले, तो ये भी याद रखिएगा अभी तक हम नहीं बोले

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लहू की बहार

    ये लोग भूल गए क्या मेरी लहू की बहार, जो कह रहें हैं मेरी दास्तां में कुछ भी नहीं

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सिर्फ जलना ही नहीं

    सिर्फ जलना ही नहीं हमको भड़कना भी तो है, इश्क़ की आग को लाजिम है हवा दी जाए

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उसकी ख़्वाहिश है

    उसकी ख़्वाहिश है कि अब लोग न रोएं न हंसें, बेहिसी वक़्त की आवाज़ बना दी जाए

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