पढ़ें दर्द पर लिखे अल्लामा इक़बाल के शेर....
अपने मन में डूब कर
अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी, तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन
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दिल से जो बात निकलती
दिल से जो बात निकलती है असर रखती है, पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है
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माना कि तेरी दीद के क़ाबिल
माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं, तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख
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असर करे न करे सुन तो
असर करे न करे सुन तो ले मिरी फ़रियाद, नहीं है दाद का तालिब ये बंदा-ए-आज़ाद
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नशा पिला के गिराना
नशा पिला के गिराना तो सब को आता है, मज़ा तो तब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी
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तेरे इश्क़ की इंतिहा
तेरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ, मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
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दिल की बस्ती
दिल की बस्ती अजीब बस्ती है, लूटने वाले को तरसती है
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