कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाए...पढ़ें 'जाम' पर बेहतरी शेर
आँसुओं
ज़िंदगी इक आँसुओं का जाम था...पी गए कुछ और कुछ छलका गए
आसमाँ
कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाए...तुम्हारे नाम की इक ख़ूब-सूरत शाम हो जाए
अंजुमन-ए-इरफ़ानी
इस महफ़िल-ए-कैफ़-ओ-मस्ती में इस अंजुमन-ए-इरफ़ानी में...सब जाम-ब-कफ़ बैठे ही रहे हम पी भी गए छलका भी गए
जाम
हम जो अब आदमी हैं पहले कभी...जाम होंगे छलक गए होंगे
बद-दुआ दी
मैं नज़र से पी रहा था तो ये दिल ने बद-दुआ दी...तिरा हाथ ज़िंदगी भर कभी जाम तक न पहुँचे
किताब
किधर से बर्क़ चमकती है देखें ऐ वाइज़...मैं अपना जाम उठाता हूँ तू किताब उठा
अश्क
मिरे अश्क भी हैं इस में ये शराब उबल न जाए...मिरा जाम छूने वाले तिरा हाथ जल न जाए
आँखों
कभी उन मद-भरी आँखों से पिया था इक जाम...आज तक होश नहीं होश नहीं होश नहीं
शिद्दत-ए-तिश्नगी
शिद्दत-ए-तिश्नगी में भी ग़ैरत-ए-मय-कशी रही...उस ने जो फेर ली नज़र मैं ने भी जाम रख दिया
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