Urdu Shayri: उस के चेहरे की चमक के सामने सादा लगा,आसमाँ पे चाँद पूरा था मगर आधा लगा
इफ़्तिख़ार मुग़ल
हम ने उस चेहरे को बाँधा नहीं महताब-मिसाल, हम ने महताब को उस रुख़ के मुमासिल बाँधा
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महवियत
देखा हिलाल-ए-ईद तो तुम याद आ गए, इस महवियत में ईद हमारी गुज़र गई
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क़मर जलालवी
रुस्वा करेगी देख के दुनिया मुझे क़मर, इस चाँदनी में उन को बुलाने को जाए कौन
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सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ये किस ज़ोहरा-जबीं की अंजुमन में आमद आमद है, बिछाया है क़मर ने चाँदनी का फ़र्श महफ़िल में
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अब्दुर्रहमान मोमिन
चाँद में तू नज़र आया था मुझे, मैं ने महताब नहीं देखा था
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मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
लुत्फ़-ए-शब-ए-मह ऐ दिल उस दम मुझे हासिल हो,इक चाँद बग़ल में हो इक चाँद मुक़ाबिल हो
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अहमद मुश्ताक़
कई चाँद थे सर-ए-आसमाँ कि चमक चमक के पलट गए,न लहू मिरे ही जिगर में था न तुम्हारी ज़ुल्फ़ सियाह थी
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सरवत हुसैन
पाँव साकित हो गए सरवत किसी को देख कर, इक कशिश महताब जैसी चेहरा-ए-दिलबर में थी
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