Urdu Shayri: उस के चेहरे की चमक के सामने सादा लगा,आसमाँ पे चाँद पूरा था मगर आधा लगा


2024/04/23 13:54:06 IST

इफ़्तिख़ार मुग़ल

    हम ने उस चेहरे को बाँधा नहीं महताब-मिसाल, हम ने महताब को उस रुख़ के मुमासिल बाँधा

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महवियत

    देखा हिलाल-ए-ईद तो तुम याद आ गए, इस महवियत में ईद हमारी गुज़र गई

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क़मर जलालवी

    रुस्वा करेगी देख के दुनिया मुझे क़मर, इस चाँदनी में उन को बुलाने को जाए कौन

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सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

    ये किस ज़ोहरा-जबीं की अंजुमन में आमद आमद है, बिछाया है क़मर ने चाँदनी का फ़र्श महफ़िल में

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अब्दुर्रहमान मोमिन

    चाँद में तू नज़र आया था मुझे, मैं ने महताब नहीं देखा था

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मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस

    लुत्फ़-ए-शब-ए-मह ऐ दिल उस दम मुझे हासिल हो,इक चाँद बग़ल में हो इक चाँद मुक़ाबिल हो

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अहमद मुश्ताक़

    कई चाँद थे सर-ए-आसमाँ कि चमक चमक के पलट गए,न लहू मिरे ही जिगर में था न तुम्हारी ज़ुल्फ़ सियाह थी

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सरवत हुसैन

    पाँव साकित हो गए सरवत किसी को देख कर, इक कशिश महताब जैसी चेहरा-ए-दिलबर में थी

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