Urdu Shyari: सवाल करती कई आँखें मुंतज़िर हैं यहाँ, जवाब आज भी हम सोच कर नहीं आए


2024/03/23 19:34:34 IST

हफ़ीज़ जालंधरी

    इरादे बाँधता हूँ सोचता हूँ तोड़ देता हूँ, कहीं ऐसा न हो जाए कहीं ऐसा न हो जाए

अल्लामा इक़बाल

    इश्क़ भी हो हिजाब में हुस्न भी हो हिजाब में, या तो ख़ुद आश्कार हो या मुझे आश्कार कर

शहपर रसूल

    मुझे भी लम्हा-ए-हिजरत ने कर दिया तक़्सीम, निगाह घर की तरफ़ है क़दम सफ़र की तरफ़

आशुफ़्ता चंगेज़ी

    सवाल करती कई आँखें मुंतज़िर हैं यहाँ, जवाब आज भी हम सोच कर नहीं आए

मिर्ज़ा ग़ालिब

    ईमाँ मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र, काबा मिरे पीछे है कलीसा मिरे आगे

क़मर जलालवी

    ज़ब्त करता हूँ तो घुटता है क़फ़स में मिरा दम, आह करता हूँ तो सय्याद ख़फ़ा होता है

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