भरी बहार में इक शाख़ पर खिला है गुलाब, पढ़ें 'गुबाब' पर बेहतरीन शेर
नाज़ुकी
नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए...पंखुड़ी इक गुलाब की सी है
गुलाब पेश करूँ
मैं चाहता था कि उस को गुलाब पेश करूँ...वो ख़ुद गुलाब था उस को गुलाब क्या देता
सरिश्त
बुरी सरिश्त न बदली जगह बदलने से...चमन में आ के भी काँटा गुलाब हो न सका
ख़ुश्बू
अज़ाब होती हैं अक्सर शबाब की घड़ियाँ...गुलाब अपनी ही ख़ुश्बू से डरने लगते हैं
शाख़
भरी बहार में इक शाख़ पर खिला है गुलाब...कि जैसे तू ने हथेली पे गाल रक्खा है
मोहब्बत
सुनो कि अब हम गुलाब देंगे गुलाब लेंगे...मोहब्बतों में कोई ख़सारा नहीं चलेगा
नफ़रतों
नए दौर के नए ख़्वाब हैं नए मौसमों के गुलाब हैं...ये मोहब्बतों के चराग़ हैं इन्हें नफ़रतों की हवा न दे
फूलों की सेज
फूलों की सेज पर ज़रा आराम क्या किया...उस गुल-बदन पे नक़्श उठ आए गुलाब के
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