मय-ख़ाना-ए-यूरोप के दस्तूर निराले हैं...पढ़ें अल्लामा इक़बाल के शेर...


2024/02/28 23:23:32 IST

ज़माने को ख़ूब पहचाना

    मिरे जुनूँ ने ज़माने को ख़ूब पहचाना, वो पैरहन मुझे बख़्शा कि पारा पारा नहीं

निगह बेबाक

    यही ज़माना-ए-हाज़िर की काएनात है क्या, दिमाग़ रौशन ओ दिल तीरा ओ निगह बेबाक

इंकार की जुरअत हुई

    उसे सुब्ह-ए-अज़ल इंकार की जुरअत हुई क्यूँकर, मुझे मालूम क्या वो राज़-दाँ तेरा है या मेरा

हरम और बना दो

    मैं ना-ख़ुश-ओ-बे-ज़ार हूँ मरमर की सिलों से, मेरे लिए मिट्टी का हरम और बना दो

मेरी इंतिहा क्या है

    ख़िर्द-मंदों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है, कि मैं इस फ़िक्र में रहता हूँ मेरी इंतिहा क्या है

कार-ए-बे-बुनियाद

    ऋषी के फ़ाक़ों से टूटा न बरहमन का तिलिस्म, असा न हो तो कलीमी है कार-ए-बे-बुनियाद

एक दाने के लिए

    पास था नाकामी-ए-सय्याद का ऐ हम-सफ़ीर, वर्ना मैं और उड़ के आता एक दाने के लिए

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