आबाद अगर न दिल हो तो बरबाद कीजिए...पढ़ें जिगर मुरादाबादी के शेर...


2024/04/01 19:37:06 IST

काँटों के दरमियाँ गुज़रे

    बहुत हसीन सही सोहबतें गुलों की मगर, वो ज़िंदगी है जो काँटों के दरमियाँ गुज़रे

किधर से बर्क़ चमकती

    किधर से बर्क़ चमकती है देखें ऐ वाइज़, मैं अपना जाम उठाता हूँ तू किताब उठा

ये भी नहीं रहा एहसास

    अब तो ये भी नहीं रहा एहसास, दर्द होता है या नहीं होता

मिरी निगाह में है

    हुस्न को भी कहाँ नसीब जिगर, वो जो इक शय मिरी निगाह में है

मुबारक मुबारक

    भुलाना हमारा मुबारक मुबारक, मगर शर्त ये है न याद आईएगा

हयात ने मारा

    मौत क्या एक लफ़्ज़-ए-बे-मअनी, जिस को मारा हयात ने मारा

आप शरमाइएगा

    हमीं जब न होंगे तो क्या रंग-ए-महफ़िल, किसे देख कर आप शरमाइएगा

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