हम तो बस ये कहते हैं रोज़ जीने मरने को...पढ़ें पीरज़ादा क़ासिम के शेर...
फ़ैसला ख़ुद ही लिखा
अपने ख़िलाफ़ फ़ैसला ख़ुद ही लिखा है आप ने, हाथ भी मल रहे हैं आप आप बहुत अजीब हैं
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इलाज-ए-तीरगी
शहर तलब करे अगर तुम से इलाज-ए-तीरगी, साहिब-ए-इख़्तियार हो आग लगा दिया करो
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जफ़ा से न यूँ बाज़
तुम्हें जफ़ा से न यूँ बाज़ आना चाहिए था, अभी कुछ और मिरा दिल दुखाना चाहिए था
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उस की ख़्वाहिश है
उस की ख़्वाहिश है कि अब लोग न रोएँ न हँसें, बे-हिसी वक़्त कीआवाज़ बना दी जाए
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असीरों को सुना दी
इक सज़ा और असीरों को सुना दी जाए, यानी अब जुर्म-ए-असीरी की सज़ा दी जाए
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एक दिया बुझा हुआ
ख़ून से जब जला दिया एक दिया बुझा हुआ, फिर मुझे दे दिया गया एक दिया बुझा हुआ
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आप बहुत अजीब हैं
ग़म से बहल रहे हैं आप आप बहुत अजीब हैं, दर्द में ढल रहे हैं आप आप बहुत अजीब हैं
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