किस मंज़िल-ए-मुराद की जानिब रवाँ हैं हम.. पढ़ें साहिर लुधियानवी के शेर...


2024/02/24 17:31:49 IST

जिस्म बर्क़-पारों के

    तुम ने सिर्फ़ चाहा है हम ने छू के देखे हैं, पैरहन घटाओं के जिस्म बर्क़-पारों के

बहारों के कारवाँ निकले

    उधर भी ख़ाक उड़ी है इधर भी ख़ाक उड़ी, जहाँ जहाँ से बहारों के कारवाँ निकले

निज़ाम की ख़ातिर

    जंग इफ़्लास और ग़ुलामी से, अम्न बेहतर निज़ाम की ख़ातिर

फ़िक्र की रौशनी

    आओ इस तीरा-बख़्त दुनिया में, फ़िक्र की रौशनी को आम करें

ख़ुद-आरा नहीं होती

    हर-चंद मिरी क़ुव्वत-ए-गुफ़्तार है महबूस, ख़ामोश मगर तब-ए-ख़ुद-आरा नहीं होती

सज़ा-याब क्या हुए

    क्या मोल लग रहा है शहीदों के ख़ून का, मरते थे जिन पे हम वो सज़ा-याब क्या हुए

कम फ़ुग़ाँ निकले

    बहुत घुटन है कोई सूरत-ए-बयाँ निकले, अगर सदा न उठे कम से कम फ़ुग़ाँ निकले

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