Urdu Shayari: बहुत अज़ीज़ थी ये ज़िंदगी मगर हम लोग, कभी कभी तो किसी आरज़ू में मर भी गए


2024/03/31 16:54:16 IST

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

    मुद्दत से आरज़ू है ख़ुदा वो घड़ी करे,हम तुम पिएँ जो मिल के कहीं एक जा शराब

इक़बाल साजिद

    एक भी ख़्वाहिश के हाथों में न मेहंदी लग सकी, मेरे जज़्बों में न दूल्हा बन सका अब तक कोई

तिलोकचंद महरूम

    तलातुम आरज़ू में है न तूफ़ाँ जुस्तुजू में है, जवानी का गुज़र जाना है दरिया का उतर जाना

जलाल मानकपुरी

    आज तक दिल की आरज़ू है वही, फूल मुरझा गया है बू है वही

क़मर जलालवी

    इस लिए आरज़ू छुपाई है, मुँह से निकली हुई पराई है

तिलोकचंद महरूम

    बाद-ए-तर्क-ए-आरज़ू बैठा हूँ कैसा मुतमइन, हो गई आसाँ हर इक मुश्किल ब-आसानी मिरी

इस्माइल मेरठी

    ख़्वाहिशों ने डुबो दिया दिल को, वर्ना ये बहर-ए-बे-कराँ होता

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