Urdu Shayari: अजब लहजा है उस की गुफ़्तुगू का,ग़ज़ल जैसी ज़बाँ वो बोलता है
वज़ीर आग़ा
वो ख़ुश-कलाम है ऐसा कि उस के पास हमें,तवील रहना भी लगता है मुख़्तसर रहना
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हामिद महबूब
चराग़ जलते हैं बाद-ए-सबा महकती है, तुम्हारे हुस्न-ए-तकल्लुम से क्या नहीं होता
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ग़मगीन देहलवी
मेरी ये आरज़ू है वक़्त-ए-मर्ग, उस की आवाज़ कान में आवे
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मोमिन ख़ाँ मोमिन
उस ग़ैरत-ए-नाहीद की हर तान है दीपक,शोला सा लपक जाए है आवाज़ तो देखो
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आवाज़
लय में डूबी हुई मस्ती भरी आवाज़ के साथ,छेड़ दे कोई ग़ज़ल इक नए अंदाज़ के साथ
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वज़ीर आग़ा
उस की आवाज़ में थे सारे ख़द-ओ-ख़ाल उस के,वो चहकता था तो हँसते थे पर-ओ-बाल उस के
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बशीर बद्र
लहजा कि जैसे सुब्ह की ख़ुश्बू अज़ान दे,जी चाहता है मैं तिरी आवाज़ चूम लूँ
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