पढ़ें परवीन शाकिर के इश्क पर लिखें कुछ चुनिंदा शेर....
मैं फूल चुनती रही
मैं फूल चुनती रही और मुझे ख़बर न हुई, वो शख़्स आ के मिरे शहर से चला भी गया
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हारने में इक
हारने में इक अना की बात थी, जीत जाने में ख़सारा और है
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जिस तरह ख़्वाब
जिस तरह ख़्वाब मिरे हो गए रेज़ा रेज़ा, उस तरह से न कभी टूट के बिखरे कोई
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काँप उठती हूँ मैं
काँप उठती हूँ मैं ये सोच के तन्हाई में, मेरे चेहरे पे तिरा नाम न पढ़ ले कोई
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बात वो आधी रात की
बात वो आधी रात की रात वो पूरे चाँद की, चाँद भी ऐन चैत का उस पे तिरा जमाल भी
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वो कहीं भी गया लौटा तो
वो कहीं भी गया लौटा तो मिरे पास आया, बस यही बात है अच्छी मिरे हरजाई की
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यही वो दिन थे
यही वो दिन थे जब इक दूसरे को पाया था, हमारी साल-गिरह ठीक अब के माह में है
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