मेरे चेहरे पे ग़ज़ल लिखती गईं...पढ़ें परवीन शाकिर के चुनिंदा शेर...
मुस्कुराऊँगी
बदन के कर्ब को वो भी समझ न पाएगा, मैं दिल में रोऊँगी आँखों में मुस्कुराऊँगी
चराग़ों
मसअला जब भी चराग़ों का उठा, फ़ैसला सिर्फ़ हवा करती है
मकान
न जाने कौन सा आसेब दिल में बस्ता है, कि जो भी ठहरा वो आख़िर मकान छोड़ गया
हिमायत
ज़ुल्म सहना भी तो ज़ालिम की हिमायत ठहरा, ख़ामुशी भी तो हुई पुश्त-पनाही की तरह
तड़पता
ये क्या कि वो जब चाहे मुझे छीन ले मुझ से, अपने लिए वो शख़्स तड़पता भी तो देखूँ
राब्ता
गवाही कैसे टूटती मुआमला ख़ुदा का था, मिरा और उस का राब्ता तो हाथ और दुआ का था
वक़्त-ए-रुख़्सत
वक़्त-ए-रुख़्सत आ गया दिल फिर भी घबराया नहीं, उस को हम क्या खोएँगे जिस को कभी पाया नहीं
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