गुज़रने को तो हज़ारों ही क़ाफ़िले गुज़रे...पढ़ें कैफ़ी आज़मी के शेर...
हसीन ख़ता
की है कोई हसीन ख़ता हर ख़ता के साथ, थोड़ा सा प्यारा भी मुझे दे दो सज़ा के साथ
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रहनुमा के साथ
मंज़िल से वो भी दूर था और हम भी दूर थे, हमने भी धूल उड़ाई बहुत रहनुमा के साथ
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ग़रीबी की रेखा
ऐसा लगा ग़रीबी की रेखा से हूँ बुलंद, पूछा किसी ने हाल कुछ ऐसी अदा के साथ
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उनसे सलीक़ा न ज़िंदगी
जो वो मिरे न रहे मैं भी कब किसी का रहा, बिछड़ के उनसे सलीक़ा न ज़िंदगी का रहा
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झुकी झुकी सी नज़र
झुकी झुकी सी नज़र बेक़रार है कि नहींदबा दबा सा सही दिल में प्यार है कि नहीं
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दिल की जवाँ धड़कनों
तू अपने दिल की जवाँ धड़कनों को गिन के बता, मिरी तरह तिरा दिल बेक़रार है कि नहीं
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ये एतबार है
तिरी उम्मीद पे ठुकरा रहा हूँ दुनिया को, तुझे भी अपने पे ये एतबार है कि नहीं
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