गुज़रने को तो हज़ारों ही क़ाफ़िले गुज़रे...पढ़ें कैफ़ी आज़मी के शेर...


2024/04/11 22:02:39 IST

हसीन ख़ता

    की है कोई हसीन ख़ता हर ख़ता के साथ, थोड़ा सा प्यारा भी मुझे दे दो सज़ा के साथ

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रहनुमा के साथ

    मंज़िल से वो भी दूर था और हम भी दूर थे, हमने भी धूल उड़ाई बहुत रहनुमा के साथ

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ग़रीबी की रेखा

    ऐसा लगा ग़रीबी की रेखा से हूँ बुलंद, पूछा किसी ने हाल कुछ ऐसी अदा के साथ

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उनसे सलीक़ा न ज़िंदगी

    जो वो मिरे न रहे मैं भी कब किसी का रहा, बिछड़ के उनसे सलीक़ा न ज़िंदगी का रहा

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झुकी झुकी सी नज़र

    झुकी झुकी सी नज़र बेक़रार है कि नहींदबा दबा सा सही दिल में प्यार है कि नहीं

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दिल की जवाँ धड़कनों

    तू अपने दिल की जवाँ धड़कनों को गिन के बता, मिरी तरह तिरा दिल बेक़रार है कि नहीं

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ये एतबार है

    तिरी उम्मीद पे ठुकरा रहा हूँ दुनिया को, तुझे भी अपने पे ये एतबार है कि नहीं

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