बदन का सारा लहू खिंच के आ गया रुख़ पर.. पढ़ें जफ़र इकबाल के शेर...


2024/04/17 22:23:44 IST

रात भर पैग़ाम था

    उस को आना था कि वो मुझ को बुलाता था कहीं, रात भर बारिश थी उस का रात भर पैग़ाम था

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मारा मुझे तन्हा कर के

    मुझ से छुड़वाए मिरे सारे उसूल उस ने ज़फ़र, कितना चालाक था मारा मुझे तन्हा कर के

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किसी ने गले लगाया था

    बस एक बार किसी ने गले लगाया था, फिर उस के बाद न मैं था न मेरा साया था

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हँसी बहुत आई

    वहाँ मक़ाम तो रोने का था मगर ऐ दोस्त, तिरे फ़िराक़ में हम को हँसी बहुत आई

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मिरा ज़ाहिर होना

    मैं किसी और ज़माने के लिए हूँ शायद, इस ज़माने में है मुश्किल मिरा ज़ाहिर होना

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पुराना कैलन्डर उतार दे

    चेहरे से झाड़ पिछले बरस की कुदूरतें, दीवार से पुराना कैलन्डर उतार दे

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हस्ब-ए-आरज़ू

    यहाँ किसी को भी कुछ हस्ब-ए-आरज़ू न मिला, किसी को हम न मिले और हम को तू न मिला

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