60 साल पहले जब भारतीय सेना ने पाकिस्तान को चटाई थी धूल
युद्ध की शुरुआत
1965 का भारत-पाक युद्ध कश्मीर के मुद्दे पर केंद्रित था. पाकिस्तान ने ऑपरेशन जिब्राल्टर के तहत कश्मीर में घुसपैठ की कोशिश की, जिसका मकसद विद्रोह भड़काना था. लेकिन भारत ने इसका करारा जवाब दिया. यह युद्ध 6 सितंबर से 23 सितंबर तक चला, जो आज भी भारत की सैन्य शक्ति का प्रतीक है.
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आसमान में भारत का दबदबा
भारतीय वायुसेना ने इस युद्ध में अपनी ताकत दिखाई. छोटा लेकिन प्रभावी ग्नैट जेट, जिसे सेबर स्लेयर कहा गया, ने पाकिस्तान के उन्नत सेबर विमानों को धूल चटाई. भारतीय वायुसेना ने 73 पाकिस्तानी विमानों को मार गिराया, जिससे आसमान में भारत का परचम लहराया.
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पाकिस्तान के गुप्त अभियान नाकाम
पाकिस्तान ने अपने एसएसजी कमांडो को पैराशूट के जरिए भारत के हलवारा, पठानकोट और आदमपुर हवाई अड्डों पर हमले के लिए भेजा. लेकिन भारतीय सुरक्षा बलों और स्थानीय लोगों ने इन कमांडो को नाकाम कर दिया. यह पाकिस्तान के लिए बड़ा झटका था.
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भारत का क्षेत्रीय कब्जा
युद्ध में भारत ने सियालकोट, लाहौर और कश्मीर के कुछ हिस्सों सहित 1,840-1,920 वर्ग किलोमीटर पाकिस्तानी क्षेत्र पर कब्जा किया. हाजी पीर दर्रा जैसे रणनीतिक स्थानों पर भी भारत ने नियंत्रण हासिल किया, जिसने युद्ध का रुख मोड़ दिया.
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ताशकंद समझौता
जनवरी 1966 में ताशकंद घोषणा पर भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए. इस समझौते ने युद्ध-पूर्व स्थिति बहाल की, कब्जाए गए क्षेत्र वापस किए गए और राजनयिक संबंधों को फिर से शुरू करने का रास्ता खोला.
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शांति की ओर कदम
ताशकंद समझौते में दोनों देशों ने एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में दखल न देने और विवादों को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने का वादा किया. यह समझौता शांति की दिशा में एक बड़ा कदम था, लेकिन कश्मीर मुद्दा अनसुलझा रहा.
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1971 के युद्ध की नींव
1965 के युद्ध ने पाकिस्तान में आंतरिक असंतोष को बढ़ाया, खासकर पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में. वहां के लोगों ने उपेक्षा महसूस की, जिसने 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम की नींव रखी. इस तरह, 1965 का युद्ध अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान के विभाजन का कारण बना.
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भारत की अमर गाथा
60 साल बाद भी 1965 का युद्ध भारत की सैन्य शक्ति और एकता का प्रतीक है. इस युद्ध ने न केवल भारत की ताकत दिखाई, बल्कि शांति और कूटनीति के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को भी रेखांकित किया. यह गाथा आज भी प्रेरणा देती है.
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