क्या महात्मा गांधी को आधिकारिक रूप से मिली थी 'राष्ट्रपिता' की उपाधि?
गांधी और 'राष्ट्रपिता' का सच
महात्मा गांधी को हम सभी राष्ट्रपिता कहते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत सरकार ने उन्हें कभी यह उपाधि आधिकारिक रूप से दी ही नहीं? कई आरटीआई, जिनमें एक 10 साल के बच्चे की आरटीआई भी शामिल है, ने साबित किया कि इस उपाधि का कोई सरकारी रिकॉर्ड नहीं है.
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संविधान की बंदिश
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 18(1) किसी भी व्यक्ति को शिक्षा या सैन्य सम्मान के अलावा कोई उपाधि देने से रोकता है. यही कारण है कि गांधीजी को राष्ट्रपिता की उपाधि कानूनी रूप से नहीं दी जा सकी, भले ही नेता इसे चाहते हों.
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'राष्ट्रपिता' की शुरुआत
राष्ट्रपिता शब्द पहली बार 6 जुलाई 1944 को सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर रेडियो प्रसारण में इस्तेमाल किया. बाद में 1947 में सरोजिनी नायडू ने भी गांधीजी को इस नाम से पुकारा. यह शब्द जनता के सम्मान और श्रद्धा का प्रतीक था, न कि कोई सरकारी मान्यता.
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नेहरू ने दी भावनात्मक गहराई
30 जनवरी 1948 को गांधीजी की हत्या के बाद जवाहरलाल नेहरू ने अपने संबोधन में कहा कि राष्ट्रपिता अब नहीं रहे. इस भावुक पल ने इस शब्द को जनमानस में और गहराई से बिठा दिया. पाठ्यपुस्तकों और मीडिया में यह शब्द गांधीजी का पर्याय बन गया.
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गांधीजी का अनूठा योगदान
आधिकारिक उपाधि न मिलने के बावजूद, गांधीजी का राष्ट्रपिता कहलाना उनके अद्वितीय नेतृत्व का प्रतीक है. अहिंसा और सत्याग्रह के दम पर उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम को दिशा दी और लाखों लोगों को एकजुट किया.
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आज भी क्यों खास है यह उपाधि?
इतिहासकार विनय लाल के अनुसार, राष्ट्रपिता भारत की सामूहिक स्मृति में पवित्र है. यह गांधीजी के नैतिक बल और आधुनिक भारत को आकार देने वाली उनकी भूमिका को दर्शाता है. यह शब्द कानून से नहीं, बल्कि जनता के दिलों से निकला है.
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