सड़क से सत्ता तक लालू यादव का अनोखा सफर
बिहार का आलू और लालू
बिहार में दो चीजें हमेशा चर्चा में रहती थीं आलू और लालू. आलू गरीबों का सहारा था, जो भूख मिटाने का सबसे सस्ता जरिया था. वहीं, लालू यादव अपनी बेबाकी और अनोखे अंदाज से हर किसी को हैरान कर देते थे. उनकी खासियत थी कि गलती को भी अपने हक की तरह पेश कर देना.
Credit: Social Media
गांव में जाति का दबदबा
लालू के बड़े भाई मॅंगरु राय बताते हैं कि उनके गांव फुलवरिया में 80% जमीन पर सवर्णों का कब्जा था, जो कुल आबादी का सिर्फ 10% थे. जाति व्यवस्था इतनी सख्त थी कि निचले वर्ग के बच्चे सवर्णों के साथ स्कूल नहीं जा सकते थे. सवर्णों को ‘बाबू साहब’ कहकर सम्मान देना पड़ता था.
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एक ताने ने बदली जिंदगी
एक दिन लालू अपने आंगन में स्लेट पर चित्र बना रहे थे. तभी कुछ जमींदारों ने तंज कसते हुए कहा कि कलयुग आ गया, अब ग्वार का बच्चा भी पढ़ेगा? उन्होंने लालू के चाचा से मजाक में पूछा, बैरिस्टर बनाएंगे क्या? इस बात ने चाचा यदुनंद राय को झकझोर दिया. अगले ही दिन वे लालू को पटना ले गए.
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पटना में नई शुरुआत
पटना में यदुनंद राय पशु चिकित्सा महाविद्यालय में ग्वाले का काम करते थे. उन्हें वहां रहने की जगह मिली थी, जहां लालू के भाई भी रहते थे. दोनों अनपढ़ थे और ग्वाले का काम करते थे. लालू ने यहीं से बी.एन. कॉलेज में दाखिला लिया, जहां से उनकी जिंदगी ने नया मोड़ लिया.
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राजनीति का पहला कदम
लालू ने शुरुआत में सोशलिस्ट नेता श्रीकृष्ण सिंह के बेटे नरेंद्र सिंह के साथ काम किया. लेकिन जल्द ही उनके बेबाक अंदाज और नाटकीय कौशल ने उन्हें अलग पहचान दिलाई. कहते हैं, लालू खाली मैदान में भी हजारों की भीड़ जुटा सकते थे.
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लालू का जादू
लालू यादव को नाटक और भाषण की कला में महारत हासिल थी. उनकी बेपरवाह और बेबाक शैली ने उन्हें बिहार ही नहीं, पूरे भारत में मशहूर कर दिया. गलती को भी हक में बदलने की उनकी कला ने उन्हें सियासत का सितारा बना दिया.
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सड़क से सत्ता तक
एक छोटे से गांव के आंगन से शुरू हुआ लालू का सफर बिहार की सत्ता तक पहुंचा. आज भी उनकी कहानी हर उस इंसान को प्रेरित करती है, जो मुश्किलों के बावजूद बड़ा सपना देखने की हिम्मत रखता है.
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