रणथंभौर की रानी एरोहेड ने ली अंतिम सांस
रणथंभौर का शांत जंगल
गर्मियों की तपती धूप में भी रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान वन्यजीव प्रेमियों का आकर्षण बना रहता है. लेकिन इस हफ्ते जंगल में सन्नाटा छा गया. 19 जून को रणथंभौर की किंवदंती, बाघिन टी-84, जिसे प्यार से एरोहेड कहते थे, ने 14 साल की उम्र में अंतिम सांस ली.
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हड्डी के कैंसर से जंग
एरोहेड लंबे समय से हड्डी के कैंसर से जूझ रही थी. उसकी आखिरी सैर को वन्यजीव फोटोग्राफर सचिन राय ने कैमरे में कैद किया. पदम तालाब के पास वह मुश्किल से कुछ कदम चली और एक पेड़ के पास गिर पड़ी. सचिन ने लिखा कि मुझे पता था, अब अंत करीब है.
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एरोहेड की शुरुआत
एरोहेड कोई साधारण बाघिन नहीं थी. वह राजघराने से थी कृष्ण की बेटी और मछली की पोती. उसने ताकत और हिम्मत की विरासत को आगे बढ़ाया. सचिन राय ने उसके शावक काल से लेकर उसकी आखिरी सैर तक का सफर देखा.
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जिंदगी की जंग
एरोहेड की कहानी आसान नहीं थी. उसकी बेटी रिद्धि ने उसे उसके क्षेत्र से बेदखल कर दिया. कई शावक खोने का दर्द भी उसे सहना पड़ा. फिर भी, उसने हार नहीं मानी. पिछले साल तक उसने एक शावक को पाला, जो उसकी आखिरी जीत थी.
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एक शिकारी की शान
दो साल पहले फोटोग्राफर जयंत शर्मा ने एरोहेड को शॉट शेल कछुए का शिकार करते हुए कैद किया. यह तस्वीर उसकी ताकत और जंगली शालीनता की गवाह है. वह रणथंभौर की सच्ची रानी थी.
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रणथंभौर का अलविदा
रणथंभौर नेशनल पार्क के इंस्टाग्राम पेज ने एरोहेड को श्रद्धांजलि दी. उन्होंने लिखा कि वह हमारे जंगल का गौरव थी. संयोग से, उसकी बेटी को उसी दिन मुकुंदरा रिजर्व में स्थानांतरित किया गया.
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सोशल मीडिया पर यादें
एरोहेड की मृत्यु की खबर से सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलियों की बाढ़ आ गई. वन्यजीव प्रेमी और फोटोग्राफर उसकी वीरता और सुंदरता को याद कर रहे हैं. वह हमेशा दिलों में जिंदा रहेगी.
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एरोहेड की विरासत
एरोहेड ने रणथंभौर की कहानियों में अपनी जगह बनाई. वह सुर्खियों में नहीं थी, लेकिन उसके रास्ते में आने वाला हर शख्स उसे कभी नहीं भूल सकता. उसकी कहानी साहस और संघर्ष की मिसाल है.
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जंगल की रानी को नमन
एरोहेड की विदाई से रणथंभौर का जंगल सूना हो गया है. लेकिन उसकी कहानी आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करेगी. वह एक योद्धा थी, जिसने अंत तक हार नहीं मानी.
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