मनमोहन सिंह की खामोशी जो इतिहास की बनी आवाज
कम बोलकर ज्यादा प्रभा
भारतीय राजनीति के एक सादगी भरे लेकिन गहन व्यक्तित्व डॉ. मनमोहन सिंह ने हमेशा कम बोलकर ज्यादा प्रभाव छोड़ा.
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मशहूर पंक्तियां
उनकी मशहूर पंक्तियां हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, न जाने कितने सवालों की आबरू रखी उनके जीवन दर्शन का प्रतीक बनीं.
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मौन रहने की आदत
ये शब्द उन्होंने 27 अगस्त 2012 को संसद परिसर में पढ़े थे, जब विपक्ष उनकी मौन रहने की आदत पर लगातार हमला बोल रहा था.
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कमजोर प्रधानमंत्री
विपक्ष ने उन्हें कमजोर प्रधानमंत्री का ठप्पा लगाया. लाल कृष्ण आडवाणी ने एक बार कहा था कि उन्होंने कभी इतना कमजोर प्रधानमंत्री नहीं देखा और प्रधानमंत्री निवास ने अपना महत्व खो दिया है.
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हमलों का जवाब
विपक्ष के इन हमलों का जवाब देते हुए मनमोहन सिंह की चुप्पी और मजबूत होती गई. लोग उन्हें बोलने के लिए उकसाते रहे, लेकिन वे शांत रहे.
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दस साल का कार्यकाल
एक समय ऐसा आया जब प्रधानमंत्री कार्यालय को खुद प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बताना पड़ा कि डॉ. सिंह ने अपने दस साल के कार्यकाल में कितनी बार सार्वजनिक रूप से बोला.
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क्या कहते हैं आंकड़े
उनके मीडिया सलाहकार ने आंकड़े पेश किए करीब 1198 भाषण, यानी औसतन हर तीसरे दिन एक संबोधन दिया.
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रिमोट कंट्रोल
विरोधी उन्हें रिमोट कंट्रोल से चलने वाला प्रधानमंत्री कहते थे, लेकिन उनकी निष्कलंक छवि ने हर चुनौती को पार किया. वे कम बोलते थे, लेकिन उनकी मौन रहने की कला इतनी प्रभावशाली थी कि वह खुद एक जवाब बन जाती थी.
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शोर से ज्यादा असर
डॉ. मनमोहन सिंह का निधन 26 दिसंबर 2024 को हुआ. वे भारतीय राजनीति के उस दुर्लभ नेता थे, जिनकी खामोशी ने शोर से ज्यादा असर किया.
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