देश में मनाया जा रहा अंत्योदय दिवस, जानें क्यों है खास
'अंत्योदय' का अर्थ
अंत्योदय का अर्थ है अंतिम व्यक्ति का उत्थान. पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने इस दर्शन को अपनाया, जिसमें समाज के सबसे कमजोर और हाशिए पर मौजूद लोगों की प्रगति पर जोर दिया गया. यह दिन हमें उनके इस विचार को जीवंत रखने की प्रेरणा देता है.
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दीनदयाल उपाध्याय का प्रारंभिक जीवन
पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 को उत्तर प्रदेश के नगला चंद्रभान गाँव में एक हिंदू परिवार में हुआ. बचपन से ही उनकी शैक्षणिक प्रतिभा ने सभी को प्रभावित किया. सीकर के महाराजा ने उनकी मेहनत के लिए उन्हें स्वर्ण पदक से सम्मानित किया था.
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भारतीय संस्कृति से गहरा लगाव
दीनदयाल जी का भारतीय संस्कृति और मूल्यों से गहरा नाता था. वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े और इसके हिंदुत्व सिद्धांतों को अपनाया. उन्होंने स्थानीय आर्थिक व्यवस्था को बढ़ावा देने की वकालत की, जो आज भी प्रासंगिक है.
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पंडित जी' की सादगी
उनकी विनम्रता और सादगी के कारण लोग उन्हें पंडित जी कहकर बुलाते थे. सिविल सेवा परीक्षा में वे पारंपरिक धोती-कुर्ता और टोपी पहनकर गए, जो उनकी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ाव को दर्शाता है. उनकी यह सादगी आज भी प्रेरणा देती है.
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आरएसएस के प्रति समर्पण
दीनदयाल जी ने अपना जीवन आरएसएस को समर्पित कर दिया. 1955 में वे उत्तर प्रदेश के संयुक्त प्रांत प्रचारक और लखीमपुर जिले के प्रचारक बने. उनका संगठनात्मक कौशल और समर्पण आज भी कई लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत है.
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अंत्योदय दिवस की प्रासंगिकता
अंत्योदय दिवस हमें समाज के हर व्यक्ति के कल्याण के लिए काम करने की प्रेरणा देता है. पंडित दीनदयाल उपाध्याय का दर्शन आज भी हमें यह सिखाता है कि समाज की प्रगति तभी संभव है, जब उसका सबसे कमजोर व्यक्ति भी सशक्त हो.
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एक प्रेरणादायक विरासत
पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती न केवल उनकी स्मृति को सम्मान देने का अवसर है, बल्कि उनके विचारों को अपनाकर समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का भी एक मौका है. आइए, इस अंत्योदय दिवस पर उनके आदर्शों को अपनाएं और समाज के उत्थान में योगदान दें.
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