क्या था पोटा कानून? जिसके बारे में अमित शाह ने फिर की बात
विपक्षी पर साधा निशाना
मानसून सत्र में ऑपरेशन सिंदूर पर बहस के दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने पोटा कानून को खत्म करने के लिए विपक्षी पार्टी पर निशाना साधा. इस पूरे बात को समझने के लिए सबसे पहले हमें पोटा के बारे में जानना पड़ेगा.
Credit: Social Media
पोटा कानून क्या था?
पोटा यानी प्रिवेंशन ऑफ टेररिज्म एक्ट, 2002 भारत सरकार का एक महत्वपूर्ण कानून था. इसे 2002 में आतंकवाद से निपटने के लिए बनाया गया. इसका मकसद था आतंकवादी गतिविधियों को रोकना और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना. यह कानून सुरक्षा एजेंसियों को मजबूत बनाने के लिए लाया गया था.
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पोटा के मुख्य प्रावधान
पोटा में आतंकवादी गतिविधियों को साफ-साफ परिभाषित किया गया. पुलिस को शक के आधार पर गिरफ्तारी का अधिकार था. लेकिन बिना आरोप पत्र के तीन महीने से ज्यादा हिरासत नहीं हो सकती थी. विशेष अदालतें बनाई गईं जो आतंकवाद के मामलों की सुनवाई करती थीं. आतंकवादी संगठनों पर प्रतिबंध और साक्ष्य जुटाने के लिए खास नियम थे.
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पोटा का उद्देश्य
पोटा का लक्ष्य था आतंकवाद के खिलाफ मजबूत कानूनी ढांचा तैयार करना. यह कानून आतंकवादी संगठनों को कमजोर करने और हमलों से नागरिकों की रक्षा करने के लिए था. सरकार का मकसद था आतंकवाद को जड़ से खत्म करना और देश में शांति बनाए रखना.
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पोटा पर क्यों उठे सवाल?
पोटा की आलोचना भी खूब हुई. कई लोगों ने कहा कि इसका दुरुपयोग हो सकता है. कुछ मामलों में ऐसा हुआ भी. आलोचकों का मानना था कि यह कानून मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है. इस कारण पोटा को लेकर राजनीतिक विवाद भी सामने आए.
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पोटा का अंत
पोटा कानून को 2004 में निरस्त कर दिया गया. इसके दुरुपयोग और मानवाधिकारों पर सवाल उठने के कारण सरकार ने इसे खत्म किया. हालांकि, आतंकवाद से लड़ने के लिए अन्य कानूनों को मजबूत किया गया.
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पोटा की विरासत
पोटा भारत के आतंकवाद विरोधी प्रयासों का एक अहम हिस्सा था. इसके बावजूद, इसके दुरुपयोग ने कई सवाल खड़े किए. आज भी आतंकवाद से निपटने के लिए भारत नए और संतुलित कानूनों पर काम कर रहा है.
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