महाराष्ट्र में तीन-भाषा नीति पर विवाद, हंगामे के बाद हिंदी की अनिवार्यता खत्म

महाराष्ट्र में मराठी भाषा को लेकर लोगों की भावनाएं गहरी हैं. हिंदी को अनिवार्य करने के फैसले से मराठी भाषा के महत्व को कम करने की आशंका जताई जा रही थी. शिक्षकों और अभिभावकों ने इसे मराठी संस्कृति पर हमला बताया. भारी विरोध के बाद सरकार ने अपने कदम पीछे खींचे.

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Courtesy: Social Media

Maharashtra Hindi Row: महाराष्ट्र सरकार ने स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा बनाने के फैसले को वापस ले लिया है. सरकारी आदेश जारी कर 16 अप्रैल को कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों के लिए हिंदी को अनिवार्य किया गया था. लेकिन क्षेत्रीय दलों, शिक्षकों और अभिभावकों के विरोध के बाद 17 जून को नया जीआर जारी कर हिंदी को वैकल्पिक बना दिया गया. यह फैसला मराठी भाषा और क्षेत्रीय भावनाओं के सम्मान में लिया गया है.

महाराष्ट्र में मराठी भाषा को लेकर लोगों की भावनाएं गहरी हैं. हिंदी को अनिवार्य करने के फैसले से मराठी भाषा के महत्व को कम करने की आशंका जताई जा रही थी. शिक्षकों और अभिभावकों ने इसे मराठी संस्कृति पर हमला बताया. भारी विरोध के बाद सरकार ने अपने कदम पीछे खींचे. राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने इसे उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का बुद्धिमानी भरा कदम बताया है. इस फैसले को मराठी गौरव की जीत के रूप में देखा जा रहा है.

समिति करेगी नई नीति पर विचार

सरकार ने अब भाषा नीति पर फैसला लेने के लिए शिक्षाविद् डॉ. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक कमेटी का निर्माण किया है. यह समिति स्कूलों में भाषा शिक्षा के भविष्य पर सिफारिशें देगी. उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि हम समिति की सिफारिशों का इंतजार करेंगे. जनता की भावनाओं का सम्मान हमारी प्राथमिकता है. उन्होंने विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा कि जब वे सत्ता में थे, तब उन्होंने भी तीन-भाषा नीति लागू की थी. शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने सरकार के रुख पर सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि मराठी भाषा से इतनी नाराजगी क्यों? सरकार को अन्य जरूरी मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए. दूसरी ओर, उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने विपक्ष से विरोध प्रदर्शन रद्द करने की अपील की. उन्होंने कहा, "जब जीआर वापस ले लिया गया है, तो मार्च का क्या मतलब? सरकार के इस कदम के बाद 5 जुलाई को प्रस्तावित विपक्ष का संयुक्त मार्च रद्द कर दिया गया.

मराठी गौरव की जीत

हिंदी को अनिवार्य करने वाले जीआर को रद्द करना मराठी भाषा और संस्कृति के लिए एक बड़ी जीत माना जा रहा है. जनता ने सरकार के इस फैसले तारीफ करते हुए स्वागत किया है. कई लोगों का मानना है कि यह कदम क्षेत्रीय एकता को मजबूत करेगा. साथ ही, यह सरकार की जनता की भावनाओं के प्रति संवेदनशीलता को दर्शाता है. अब सभी की नजरें डॉ. जाधव की समिति की सिफारिशों पर टिकी हैं. यह समिति महाराष्ट्र के स्कूलों में भाषा नीति को लेकर नया दिशा-निर्देश देगी. सरकार ने स्पष्ट किया है कि वह जनता और शिक्षाविदों की राय को ध्यान में रखकर ही कोई फैसला लेगी. इस बीच, मराठी भाषा के समर्थकों में उत्साह है. वे इसे अपनी भाषा और संस्कृति की रक्षा के रूप में देख रहे हैं.

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