Supreme Court on Waqf law: सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को लेकर केंद्र सरकार और याचिकाकर्ताओं की दलीलों को सुना. कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रख लिया. मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने टिप्पणी करते हुए कहा कि हिंदुओं में मोक्ष की अवधारणा है.
केंद्र सरकार ने कोर्ट में कहा कि वक्फ दान से ज्यादा कुछ नहीं है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील देते हुए कहा कि वक्फ इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है. दान हर धर्म का हिस्सा है. हिंदू, सिख और ईसाई धर्मों में भी दान की व्यवस्था है. केंद्र ने वक्फ को इस्लामी दान की तरह पेश किया.
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि वक्फ ईश्वर को समर्पित दान है. यह आध्यात्मिक लाभ के लिए है. उन्होंने इसे अन्य धर्मों के दान से अलग बताया. अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि हिंदू धर्म में मंदिर अनिवार्य नहीं हैं. वेदों में प्रकृति, अग्नि, जल और वर्षा की पूजा का प्रावधान है. मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा कि हिंदुओं में मोक्ष है. न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने ईसाई धर्म का जिक्र करते हुए कहा कि हम सभी स्वर्ग जाना चाहते हैं. कोर्ट ने सभी धर्मों में दान की समानता पर जोर दिया.
कपिल सिब्बल ने केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति का विरोध किया. उन्होंने कहा कि हिंदू धार्मिक स्थलों में गैर-हिंदुओं को शामिल नहीं किया जाता. वक्फ में भी ऐसा ही होना चाहिए. सिब्बल ने गैर-मुस्लिमों के लिए चार सीटों के आरक्षण को गलत बताया.
सुप्रीम कोर्ट ने तीन दिनों तक दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया. मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि शुक्रवार को आदेश जारी हो सकता है. वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 में गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्डों में शामिल करने का प्रावधान है. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह इस्लामी अवधारणा के खिलाफ है. केंद्र का तर्क है कि दान सभी धर्मों का हिस्सा है. यह मामला धर्म और दान की परिभाषा पर गहन बहस को जन्म दे रहा है.