Women’s Reservation Bill: 27 साल का इंतजार होगा खत्म, जानिए महिला आरक्षण बिल आने से क्या बदलेगा?

Women’s Reservation Bill: संसद के विशेष सत्र के पहले दिन केंद्रीय कैबिनेट ने महिला आरक्षण बिल को पेश कर दिया गया है. कैबिनेट से पारित होने के बाद यह बिल लोकसभा और राज्यसभा में पेश होने की संभावना है. इसके साथ ही पिछले कई सालों से संसद में अटका पड़ा महिला आरक्षण बिल इस बार […]

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Women’s Reservation Bill: संसद के विशेष सत्र के पहले दिन केंद्रीय कैबिनेट ने महिला आरक्षण बिल को पेश कर दिया गया है. कैबिनेट से पारित होने के बाद यह बिल लोकसभा और राज्यसभा में पेश होने की संभावना है. इसके साथ ही पिछले कई सालों से संसद में अटका पड़ा महिला आरक्षण बिल इस बार विशेष सत्र के दौरान पेश हो सकता है. महिला आरक्षण बिल अब तक 6 बार संसद में पेश किया जा चुका है.
 
महिला आरक्षण बिल में लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें यानी 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है. इस बिल को कानूनी दर्जा मिलने के बाद पंचायत से लेकर विधानसभाओं, विधान परिषदों और देश की संसद में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ेगी. और देश की सियासत से लेकर सरकारी और निजी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ेगी. लेकिन इसका 27 साल का सफर इतना आसान भी नहीं था.

1996 में से अटका पड़ा है  महिला आरक्षण बिल-

साल 1996 से ही महिला आरक्षण बिल सदन में अटका हुआ है. सबसे पहले एचडी देवगौड़ा सरकार ने 12 सितंबर 1996 को इस बिल को संसद में पेश किया था. लेकिन ये पारित नहीं हो सका था. यह बिल सदन में 81 वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में पेश किया गया था.  इस आरक्षण के तहत ही अनुसूचित जाति (SSC)अनुसूचित जनजाति (ST)के लिए उप-आरक्षण का प्रावधान था हालांकि, अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं था.

अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भी संसद में पेश हुआ था महिला आरक्षण बिल-

अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने साल 1998 में लोकसभा में फिर महिला आरक्षण बिल को पेश किया था. कई दलों के सहयोग से चल रही वाजपेयी सरकार को इसको लेकर विरोध का सामना करना पड़ा और नतीजा बिल पारित नहीं किया जा सका. वाजपेयी सरकार ने इसे 1999, 2002 और 2003-2004 में भी पारित कराने की कोशिश की लेकिन इस दिशा में सफलता नहीं मिल पाई.

वहीं यूपीए सरकार इसे 2010 में राज्यसभा में पारित कराने में सफल तो हुई लेकिन लोकसभा में ये अटक गया. 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए सरकार सत्ता में आई और डॉक्टर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने. यूपीए सरकार ने 2008 में इस बिल को 108 वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में 9 मार्च 2010 को राज्यसभा में पेश किया जहां यह बिल को भारी बहुमत से पारित हुआ. समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल के भारी विरोध के चलते यूपीए सरकार ने इस बिल को लोकसभा में पेश नहीं किया. कांग्रेस को कहीं न कहीं डर था कि अगर उसने बिल को लोकसभा में पेश किया तो उसकी सरकार ख़तरे में पड़ सकती है. साल 2014 में लोकसभा भंग होने के बाद यह बिल अपने आप खत्म हो गया. लेकिन राज्यसभा स्थायी सदन है, इसलिए यह बिल अभी जिंदा है.

महिला आरक्षण बिल से क्या होगा बदलाव-

अब महिला आरक्षण बिल को लोकसभा में नए सिरे से पेश किया गया है. अगर लोकसभा इसे पारित कर दे, और राष्ट्रपति की मंजूरी मिल जाएगी तब यह कानून बन जाएगा. अगर यह बिल कानून बन जाता है तो 2024 के चुनाव में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण मिल जाएगा. इससे लोकसभा की हर तीसरी सदस्य महिला होगी. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 19 विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी 10 फीसदी से भी कम है.

आपको बता दें कि, मौजूदा लोकसभा में 543 सदस्यों में से महिलाओं की संख्या 78 है, जो 15 फीसदी से भी कम है. राज्यसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व लगभग 14 फीसदी है. कई विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी 10 फीसदी से भी कम है. ऐसे में अगर इस बिल को लोकसभा में मंजूरी मिल गई तो संसद में महिला सांसदों का पूरा नंबर बदल जाएगा. फिलहाल लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 78 है जो इस बिल के पास होते ही बढ़कर 179 हो जाएगी.