'जेल जाने से पहले मैंने इस्तीफा दिया', लोकसभा में अमित शाह ने पेश किया 3 विधेयक

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल के सवाल पर कड़ा जवाब दिया. उन्होंने कहा कि उनके खिलाफ लगाए गए आरोप पूरी तरह झूठे थे. लोकसभा में शाह ने स्पष्ट किया कि मैंने संवैधानिक सिद्धांतों का सम्मान किया.

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Courtesy: Social Media

Amit Shah: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल के सवाल पर कड़ा जवाब दिया. उन्होंने कहा कि उनके खिलाफ लगाए गए आरोप पूरी तरह झूठे थे. लोकसभा में शाह ने स्पष्ट किया कि मैंने संवैधानिक सिद्धांतों का सम्मान किया. आरोप झूठे थे, फिर भी मैंने इस्तीफा दिया और जेल गया. यह बयान उनकी 2010 की गिरफ्तारी से जुड़े सवाल पर आया.  

अमित शाह ने लोकसभा में तीन महत्वपूर्ण विधेयक पेश किए. पहला, संविधान (एक सौ तीसवां संशोधन) विधेयक, 2025, जिसमें भ्रष्टाचार या गंभीर अपराधों के आरोप में 30 दिन तक हिरासत में रहने पर प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को पद से हटाने का प्रावधान है. 

अमित शाह भी गए थे जेल 

अमित शाह को जुलाई 2010 में सीबीआई ने गिरफ्तार किया था, उस समय वे गुजरात के गृह राज्य मंत्री थे. यह गिरफ्तारी सोहराबुद्दीन शेख, उनकी पत्नी कौसर बी और सहयोगी तुलसीराम प्रजापति के कथित फर्जी मुठभेड़ मामले में हुई थी. सीबीआई ने फोन रिकॉर्ड और अन्य सबूतों के आधार पर शाह पर साजिश रचने का आरोप लगाया था. गिरफ्तारी से पहले शाह ने अपने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. उन्हें साबरमती जेल में न्यायिक हिरासत में रखा गया. उसी साल बाद में उन्हें जमानत मिल गई. दिसंबर 2014 में एक विशेष सीबीआई अदालत ने अमित शाह को सभी आरोपों से बरी कर दिया. कोर्ट ने कहा कि उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं थे. इस फैसले ने शाह को बड़ी राहत दी और उनके राजनीतिक करियर को नया बल मिला.  

संविधान और नियमों का सम्मान  

शाह ने अपने बयान में जोर दिया कि उन्होंने हमेशा संविधान और कानून का पालन किया. उन्होंने कहा कि झूठे आरोपों के बावजूद, उन्होंने नियमों का सम्मान करते हुए इस्तीफा दिया और जांच का सामना किया. यह बयान उनके संवैधानिक मूल्यों के प्रति समर्पण को दर्शाता है. नए विधेयकों के प्रस्ताव ने राजनीतिक हलकों में चर्चा शुरू कर दी है. ये विधेयक भ्रष्टाचार और अपराध के मामलों में नेताओं की जवाबदेही बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माने जा रहे हैं. शाह के बयान और विधेयकों ने एक बार फिर संवैधानिक और कानूनी प्रक्रियाओं पर ध्यान केंद्रित किया है.  

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