राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने संगठन के औपचारिक पंजीकरण न होने की बहस पर स्पष्ट जवाब दिया. समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार रविवार नौ नवंबर को भागवत ने कहा कई चीजें पंजीकृत नहीं हैं. यहां तक कि हिंदू धर्म भी पंजीकृत नहीं है.
उन्होंने बताया कि आरएसएस पर पहले तीन बार प्रतिबंध लग चुका है. इसलिए सरकार ने हमें मान्यता दी है. भागवत ने तर्क दिया अगर हम नहीं थे तो उन्होंने किस पर प्रतिबंध लगाया. भागवत सत्तारूढ़ भाजपा के मूल संगठन का नेतृत्व करते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी संगठन से राजनीति की शुरुआत की थी.
भागवत कर्नाटक के बेंगलुरु में एक कार्यक्रम में चुनिंदा सवालों के जवाब दे रहे थे. वहां कांग्रेस सरकार आरएसएस के लिए सार्वजनिक स्थानों का उपयोग मुश्किल बना रही है. मंत्री प्रियांक खड़गे सांप्रदायिक संगठन के खिलाफ सख्त रुख अपना रहे हैं. आरएसएस के सौ साल के इतिहास का जिक्र करते हुए भागवत ने कहा क्या हमें आरएसएस को ब्रिटिश सरकार के साथ पंजीकृत करना चाहिए था क्योंकि इसकी स्थापना उन्नीस सौ पच्चीस में हुई थी.
आजादी के बाद उन्होंने बताया सरकार ने पंजीकरण अनिवार्य नहीं किया. आरएसएस प्रमुख ने संगठन की कर स्थिति पर भी बात की. उन्होंने दावा किया कि आयकर विभाग और अदालतों ने यह देखा है कि आरएसएस व्यक्तियों का एक समूह है. इसे कर से छूट दी गई है. एक दिन पहले बेंगलुरु में ही भागवत ने कहा था कि आरएसएस का उद्देश्य हिंदू समाज को संगठित करना है. यह सत्ता के लिए नहीं बल्कि राष्ट्र के गौरव के लिए है.
भागवत ने जोर देकर कहा कि हिंदू भारत के लिए जिम्मेदार हैं. उन्होंने आरएसएस की हिंदू परिभाषा दोहराई कि सभी भारतीय हिंदू हैं. उन्होंने तर्क दिया कि भारत में कोई अहिंदू नहीं है. क्योंकि सभी मुसलमान और ईसाई एक ही पूर्वजों के वंशज हैं. देश की मूल संस्कृति हिंदू है. भागवत ने ये टिप्पणियां शनिवार को संघ की सौ वर्ष की यात्रा नए क्षितिज पर व्याख्यान में कीं. आरएसएस का लक्ष्य क्या है इस पर भागवत ने कहा जब संघ के रूप में एक संगठित शक्ति खड़ी होती है आरएसएस उसे सत्ता नहीं चाहिए. उसे समाज में प्रमुखता नहीं चाहिए. वह बस भारत माता की महिमा के लिए समाज की सेवा करना उसे संगठित करना चाहता है. हमारे देश में लोगों को इस पर विश्वास करना मुश्किल लगता था लेकिन अब वे विश्वास करते हैं.