Stray Dogs Supreme Court Verdict: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को आवारा कुत्तों से जुड़े अपने 11 अगस्त के आदेश में बदलाव किया. कोर्ट ने कहा कि नसबंदी और टीकाकरण के बाद कुत्तों को उसी क्षेत्र में वापस छोड़ा जाएगा. यह फैसला दिल्ली-एनसीआर में कुत्तों के काटने की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए लिया गया.
सुप्रीम कोर्ट ने 11 अगस्त को दिल्ली-एनसीआर की सड़कों से सभी आवारा कुत्तों को आठ हफ्तों में हटाने का आदेश दिया था. कोर्ट ने अधिकारियों को कुत्तों के लिए आश्रय स्थल बनाने और उन्हें सड़कों पर वापस न छोड़ने का निर्देश दिया. इस फैसले से पशु प्रेमियों और कल्याण संगठनों में नाराजगी फैल गई. कई संगठनों ने इसे कुत्तों के प्रति क्रूरता बताया.
न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने 28 जुलाई को एक समाचार के आधार पर इस मामले का स्वतः संज्ञान लिया था. कोर्ट ने दिल्ली में कुत्तों के लिए तुरंत आश्रय स्थल बनाने और बुनियादी ढांचे की रिपोर्ट देने को कहा था. 12 अगस्त को भारत के मुख्य न्यायाधीश भूषण आर. गवई ने इस मामले को तीन न्यायाधीशों की पीठ को सौंप दिया. न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली इस पीठ ने 14 अगस्त को सुनवाई की. इस दौरान 11 अगस्त के आदेश पर रोक लगाने की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा गया. शुक्रवार को कोर्ट ने अपने नए आदेश में कहा कि कुत्तों को सड़कों से हटाने के बजाय उनकी नसबंदी और टीकाकरण किया जाएगा. इसके बाद उन्हें उसी क्षेत्र में वापस छोड़ा जाएगा. कोर्ट ने नगर निगम को विशेष भोजन क्षेत्र बनाने का भी निर्देश दिया. सड़कों पर कुत्तों को खाना देने पर रोक लगाई गई.
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी किया. कोर्ट ने आवारा कुत्तों के लिए राष्ट्रीय नीति बनाने के लिए सुझाव मांगे हैं. यह कदम इस समस्या का स्थायी समाधान खोजने के लिए उठाया गया है. 14 अगस्त की सुनवाई में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कुत्तों के काटने की गंभीरता पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि हर साल 37 लाख लोग कुत्तों के काटने का शिकार होते हैं. यह रोजाना 10,000 मामले हैं. रेबीज़ से हर साल 305 मौतें होती हैं. मेहता ने यह भी कहा कि कुछ लोग सोशल मीडिया पर पशु प्रेमी बनकर दिखाते हैं, लेकिन आम लोग चुपचाप इस समस्या से पीड़ित हैं. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से पशु प्रेमी नाराज थे. उनका कहना था कि कुत्तों को सड़कों से हटाना उनके लिए अन्याय है. कई संगठनों ने कोर्ट से इस फैसले पर पुनर्विचार की मांग की थी. नसबंदी और टीकाकरण के जरिए कुत्तों की आबादी नियंत्रित करने और लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का प्रयास किया जा रहा है. राष्ट्रीय नीति बनने के बाद इस समस्या का और बेहतर समाधान हो सकता है.