New Criminal Laws: देश में 1 जुलाई से आपराधिक कानूनों में बदलाव किए जाएंगे. इस दौरान भारतीय दंड संहिता (IPC) की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, भारतीय न्याय संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम लागू किया जाएगा. भारत सरकार ने आज ( शनिवार) को इस संबंध में एक अधिसूचना जारी की है. बता दें, कि इन तीनों कानूनों को बीते साल 2023 में संसद से मंजूरी मिली थी और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की तरफ से इन कानूनों को 25 दिसंबर को सहमति मिल गई थी.
केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, इन नए कानूनों के प्रावधान 1 जुलाई से लागू होंगे. ये पुराने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), आपराधिक प्रक्रिया संहिता और 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे. इन तीनों कानूनों का उद्देश्य अलग-अलग अपराधों और उनकी सजाओं की परिभाषा देकर देश में आपराधिक न्याय प्रणाली में पूरी तरह से बदलाव करना है.
Bharatiya Sakshya Adhiniyam 2023, Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita 2023 and Bharatiya Nyaya Sanhita 2023 to come into effect from 1st July, 2024. pic.twitter.com/Kw0F3I7A4D
— ANI (@ANI) February 24, 2024
वहीं इन नए कानूनों का उद्देश्य आतंकवाद की स्पष्ट परिभाषा देने, राजद्रोह को खत्म किए जाने और कई अन्य बदलावों के साथ-साथ राज्य के खिलाफ राज्य के खिलाफ अपराध नामक एक नए सेक्शन को पेश करना, साथ ही ब्रिटिश जमाने से चले आ रहे कई कानूनों में पूरी तरफ से बदलाव करना है.
केंद्र सरकर की तरफ से इन तीनों कानून के संबंध में पिछले साल 2023 में संसद के मानसून सत्र के दौरान विधेयक पेश किया था. इसके बाद इसे गृह मामलों की संसद की स्थायी समिति के पास भी भेजा गया था. समिति की ओर से की गई कई सिफारिशों को शामिल किए जाने के बाद इसे संसद के शीतकालीन सत्र में पास कर दिया गया.
भारतीय न्याय संहिता, 2023 जो कि भारतीय दंड संहिता, 1860 की जगह लेगा. इस दौरान राजद्रोह को हटा दिया गया है लेकिन अलगाववाद, विद्रोह और भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता के खिलाफ कार्य करने वाले व्यक्तियों को सजा देने के लिए इसमें एक नया प्रावधान पेश किया गया है. साथ ही इस नए कानून में नाबालिगों से सामूहिक बलात्कार और मॉब लिंचिंग के लिए मृत्यु दंड का प्रवधान है.
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 कानून यह सीआरपीसी, 1973 की जगह लेगा. इस दौरान किसी भी मामलों के लिए जारी तय समय में जांच और सुनवाई और बहस पूरी होने के बाद 30 दिनों के अंदर फैसला देने का प्रावधान है. यौन उत्पीड़न पीड़ितों के बयान की वीडियो रिकॉर्डिंग को अनिवार्य किया गया है. इसके साथ-साथ अपराध में शामिल पाए जाने के बाद संपत्ति को कुर्की किए जाने के लिए नए प्रावधानों को जोड़ा गया है.
यह कानून भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की जगह लेगा. कोर्ट में पेश और स्वीकार्य साक्ष्य में इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड, ईमेल, सर्वर लॉग, कंप्यूटर, स्मार्टफोन, लैपटॉप, एसएमएस, वेबसाइट, स्थानीय साक्ष्य, मेल, उपकरणों के मैजेस को शामिल किया गया है. केस डायरी, एफआईआर, आरोप पत्र और फैसले सहित सभी रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण किया जाएगा. इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड का कानूनी प्रभाव, वैधता और प्रवर्तनीयता कागजी रिकॉर्ड के समान ही होगा.