Electricity Amendment Bill: भारत का विद्युत क्षेत्र वर्षों से बढ़ती सब्सिडियों, बढ़ते घाटों और गहरी अक्षमताओं से जूझ रहा है. इस व्यवस्था में किसान एक विचित्र स्थिति में फंसे रहे- कागज़ों पर सस्ती बिजली, लेकिन असल में खराब गुणवत्ता की सप्लाई, अनियमित समय पर बिजली, और अविश्वसनीय इंफ्रास्ट्रक्चर. बिजली (संशोधन) बिल इसी चक्र को तोड़ने की कोशिश करता है.
भले ही कुछ किसान संगठनों को महंगे टैरिफ और निजीकरण का डर है, लेकिन बिल की वास्तविक धाराएं इससे बिल्कुल अलग तस्वीर पेश करती हैं- एक ऐसी तस्वीर जिसमें किसानों को ज़्यादा भरोसेमंद सप्लाई, मजबूत सुरक्षा और पारदर्शी सब्सिडी मिलती है.
कई वर्षों से ग्रामीण भारत की सबसे बड़ी बिजली समस्या टैरिफ नहीं, बल्कि अविश्वसनीय सप्लाई रही है.
देशभर के किसान बार-बार इन समस्याओं का सामना करते हैं:
● आधी रात या तड़के सप्लाई,
● वोल्टेज गिरना,
● मोटरों का बार-बार जलना,
● पंप और उपकरणों का नुकसान,
● तीन-फेज सप्लाई का अनियमित मिलना।
इसका मूल कारण साफ है: डिस्कॉम्स की वित्तीय हालत बहुत कमजोर है, जिसके कारण वे नेटवर्क का रख-रखाव या स्थिर सप्लाई सुनिश्चित नहीं कर पाते।
बिल इसमें कैसे सुधार लाता है:
बेहतर गवर्नेंस, समय पर सब्सिडी भुगतान और वित्तीय स्थिरता के ज़रिए डिस्कॉम्स को यह क्षमता मिलेगी:
● ग्रामीण फीडरों को अपग्रेड करने की,
● वोल्टेज सुधारने की,
● आउटेज कम करने की,
● किसानों को निश्चित और सुविधाजनक समय पर सप्लाई देने की।
डिस्कॉम्स की वित्तीय मजबूती का सबसे प्रत्यक्ष लाभ किसानों को मिलता है।
2. सब्सिडियाँ समाप्त नहीं—बल्कि और मज़बूत की जा रही हैं
यह बड़ा भ्रम है कि बिल सब्सिडियाँ हटाता है।
वास्तव में, यह सब्सिडियों को और पारदर्शी और जवाबदेह बनाता है।
टैरिफ़ में छुपी छूट के बजाय अब राज्य सरकारें सब्सिडी की राशि सीधे डिस्कॉम्स को देंगी।
किसानों के लिए लाभ:
● राज्यों को समय पर सब्सिडी देना कानूनी रूप से आवश्यक होगा,
● डिस्कॉम्स वित्तीय संकट से राहत पाएँगे,
● सब्सिडी देर से मिलने के कारण होने वाली कटौती या सप्लाई बाधित नहीं होगी,
● सब्सिडी एक स्थायी अधिकार बनेगी, न कि केवल राजनीतिक वादा।
किसानों के लिए यह सुरक्षा और स्थिरता की दिशा में बड़ा कदम है।
3. प्रतिस्पर्धा का अर्थ निजीकरण नहीं है
कुछ लोग मानते हैं कि वितरण क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा लाने का अर्थ निजीकरण है।
बिल ऐसा कुछ नहीं कहता।
प्रतिस्पर्धा का वास्तविक अर्थ:
● कई सेवा प्रदाता काम कर सकेंगे,
● प्रदर्शन की तुलना और मूल्यांकन संभव होगा,
● सेवा की गुणवत्ता में सुधार होगा,
● खासकर किसानों को बेहतर सेवा मांगने का अधिकार मिलेगा
किसान इस बात से चिंतित नहीं कि बिजली कौन दे रहा है—बल्कि इससे कि सप्लाई कितनी विश्वसनीय, सस्ती और समय पर है।
मौजूदा एकाधिकार यह सुनिश्चित नहीं कर पाया।
प्रतिस्पर्धा कर सकती है।
4. विरोध समझ में आता है—पर बिल फिर भी बेहतर विकल्प है
किसान संगठन पुराने नीतिगत झटकों को याद रखते हैं और छिपे हुए टैरिफ़ बढ़ोतरी से डरते हैं।
उनकी चिंताएँ बिल्कुल वास्तविक हैं।
लेकिन बिल को पूरी तरह खारिज कर देना किसानों को उसी खराब और बिगड़ती हुई बिजली व्यवस्था में फँसा कर रखेगा।
यह बिल पारदर्शी सब्सिडी, बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर और निश्चित सेवा मानकों की नींव रखता है।
5. किसानों को बिल में कौन-सी मजबूत सुरक्षा मांगनी चाहिए
पूरे सुधार का विरोध करने के बजाय, किसान संगठन इस बिल में ये गारंटियाँ सुनिश्चित कर सकते हैं:
1. कानूनी रूप से संरक्षित कृषि सब्सिडियाँ
2. निश्चित घंटे और समय बद्ध कृषि सप्लाई
3. वोल्टेज उतार-चढ़ाव और पंप/मोटर नुकसान पर दंड और मुआवज़ा
4. पारदर्शी शिकायत निवारण प्रणाली
5. ग्रामीण नेटवर्क और फीडर अपग्रेड के समय-बद्ध लक्ष्य
ये माँगे व्यावहारिक, लागू करने योग्य और किसानों के हित में हैं.
इनसे बिल किसानों के लिए अधिकार और सुरक्षा का दस्तावेज़ बन सकता है.
वास्तविक सशक्तिकरण का अवसर
पुरानी बिजली व्यवस्था ने किसानों को लंबे समय से निराश किया है- खराब सप्लाई, अनिश्चित समय, कमजोर इंफ्रास्ट्रक्चर और लगातार बनी रहने वाली अनिश्चितता.
बिजली संशोधन बिल इससे निकलने का एक अवसर है।
यदि इसे जवाबदेही और सुरक्षा के साथ लागू किया जाए, तो यह सुनिश्चित कर सकता है:
● अधिक विश्वसनीय बिजली,
● पारदर्शी सब्सिडी,
● कम डाउनटाइम,
● मोटर और पंप के कम नुकसान,
● अधिक जवाबदेह और संवेदनशील वितरण प्रणाली.
यह किसानों पर बोझ नहीं- बल्कि उनकी सशक्तिकरण की दिशा में कदम है.
सच्चा अवसर बिल को खारिज करने में नहीं, बल्कि उसे किसान हितैषी बनाने में है.
भारत के किसानों के लिए यह अनिश्चितता और भरोसे, तथा निर्भरता और सम्मान के बीच का अंतर साबित हो सकता है.