Punjab: 14 साल बाद भी नहीं मिला इंसाफ? शहीद लखबीर सिंह के परिवार ने कहा- सरकार नहीं निभा पाई अपना वादा

Punjab: यह कहानी आज से 14 साल पहले एक देशभक्त की है जिसका परिवार आज भी सरकार के किए वांदे के मुताबिक सरकारी नौकरी का इंतजार कर रहा है लेकिन अभी तक किसी भी सरकार ने उनकी एक न सुनी. तो आइए जानते इस खबर में विस्तार से जानते है कि, शहीद लखबीर सिंह का […]

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Punjab: यह कहानी आज से 14 साल पहले एक देशभक्त की है जिसका परिवार आज भी सरकार के किए वांदे के मुताबिक सरकारी नौकरी का इंतजार कर रहा है लेकिन अभी तक किसी भी सरकार ने उनकी एक न सुनी. तो आइए जानते इस खबर में विस्तार से जानते है कि, शहीद लखबीर सिंह का परिवार और उनके देशभक्त की कहानी के बारें में,

पंजाब के मोगा जिले के गांव चारिक के लखबीर सिंह का जन्म 1 जुलाई 1983 को हुआ था, इनके पिता का नाम सरदार मेजर सिंह चीमा और माता का नाम जसविंदर कौर है. वही लखबीर सिंह ने अपनी शिक्षा गांव के ही स्कूल में की और उनके अंदर बचपन से ही देश की सेवा करने का जज्बा था.

वह बचपन में ही स्कूल में होने वाले कार्यक्रमों में देश भक्ति के गीतों और नाटकों में हिस्सा लेते थे और हमेशा यही कहते थे कि वह फौज में भर्ती होगें और देश की सेवा करेगें. तिरंगे में लिपट कर ही एक दिन घर आएगा वही हुआ. उसने फौज में भर्ती होने के लिए 12 बार टेस्ट दिए, औऱ एक दिन वे सफल हुए और उन्हें साल 2004 में सेना की सिख रेजिमेंट भर्ती कर लिया गया.

लखबीर सिंह के परिवार में चार सदस्य थे, जिनमें उनका छोटा भाई, माता और पिता शामिल थे. उन्हें हमेशा एक बहन की कमी खली और उन्हें लगता था कि उनकी भी एक बहन होती जो उनकी कलाई पर राखी बाधंती. इस कमी को पूरा करने के लिए लखबीर सिंह ने अपने ही रिश्तेदार की बेटी को सरकारी माप दंडो के मुताबिक गोद ले लिया.

लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था. 23 फरवरी 2009 का वह काला दिन जब लखबीर अपने साथियों के साथ जम्मू कश्मीर के सेपोर में आंतकवादियों की घेराबंदी के लिए गए. जहां कुछ आंतकवादी एक ही घर में छुपे हुए थे, वहां हुई गोलीबारी में लखबीर सिंह को गोली लगी और वे घायल हो गए. और 24 फरवरी 2009 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.

साथ ही आगे बता दें कि उनके पार्थिव शरीर को गृहग्राम चारिक लाया गया जहां पूरे सम्मान के साथ. उनका अंतिम संस्कार किया गया. उस समय की सरकारों ने उनके परिवार के साथ उनकी हर तरह की मदद करने की बात की लखबीर सिंह का परिवार एक छोटा सा किसान का परिवार है उस समय की सरकारों ने और उसके बाद की सरकारों ने जो शहीद के परिवार के साथ वायदे किए थे उनमें से करीब 14 साल बीत जाने के बाद भी कोई वायदा पूरा नहीं किया गया.

वहीं उनकी ग्राम पंचायत की तरफ से गांव में ही उनकी प्रतिमा बना कर लगा दी गई ताकि गांववासी उनकी शहीदी को याद करते रहें. वही आज हमारी टीम ने जब उनके घर और उनके स्कूल का दौरा किया, तो लखबीर सिंह को सातवीं कक्षा में पढ़ाने वाली स्कूल टीचर ने बताया कि वह एक सच्चा देश भक्त था और उनको देश के साथ लगाव था और वह फौज में भर्ती होकर देश की सेवा करना चाहता थे.

वहीं लखबीर सिंह के दोस्त, पड़ोसी और गांववासी उनकी इस कुर्बानी पर फक्र महसूस करते है. शहीद लखबीर सिंह के माता पिता को आज भी इस बात का दुख है कि उनके बेटे की शहीदी का सरकारों ने कुछ भी नहीं माना और अपने किए वायदे को निभा नहीं सकें.