Baloch Liberation Army: पाकिस्तान के लिए बुधवार का दिन सबसे बुरे दिनों में से एक रहा है. भारत के ऑपरेशन सिंदूर के तहत नौ आतंकी ढांचों पर निशाना साधने के बीच पाकिस्तानी सेना को दोतरफा झटका लगा है. इसी बीच बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने बलूचिस्तान के बोलन और केच क्षेत्रों में दो अलग-अलग हमलों की जिम्मेदारी ली है. जिनमें 14 पाकिस्तानी सैनिकों के मारे जाने की सूचना मिली है.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बालूचिस्तान द्वारा पहला हमला बोलन के माच क्षेत्र में शोरकंद के पास हुआ. मिल रही जानकारी के मुताबिक बीएलए के विशेष सामरिक दस्ते ने पाकिस्तानी सेना के काफिले पर रिमोट-नियंत्रित विस्फोटक उपकरण (आईईडी) से हमला किया. इस विस्फोट में विशेष ऑपरेशन कमांडर तारिक इमरान और सूबेदार उमर फारूक सहित 12 सैनिक मारे गए. विस्फोट इतना जबरदस्त था कि सैन्य वाहन पूरी तरह नष्ट हो गया.
बीएलए द्वारा किए गए दूसरे हमले में बीएलए के लड़ाकों ने केच के कुलाग तिगरान क्षेत्र में सेना के बम निरोधक दस्ते को निशाना बनाया. बीएलए द्वारा यह हमला बुधवार दोपहर 3 बजे के आस-पास की गई. यहां एक निकासी मिशन के दौरान रिमोट-नियंत्रित आईईडी विस्फोट किया गया. जिसमें दो पारकिस्तानी सैनिकों की जान चली गई. बीएलए द्वारा जारी किए गए बयान में बलूच लिबरेशन आर्मी के प्रवक्ता जीयंद बलूच ने कहा कि पाकिस्तानी सेना को विदेशी शक्तियों का भाड़े का सैन्य संगठन बताने वालों को समझना चाहिए कि यह सेना खुद एक किराए का हथियारबंद गिरोह है, जो विदेशी पूंजी और बाहरी ताकतों के इशारों पर चलती है.
उन्होंने कहा कि इस सेना की वर्दी का उद्देश्य समय के साथ बदलता रहता है, कभी बंदरगाहों की सुरक्षा, कभी आर्थिक गलियारों की रक्षा, तो कभी कर्जदाताओं को खुश करने की सेवा करते हैं. उन्होंने पाकिस्तानी सेना पर गुस्सा जाहिर करते हुए कहा कि यह सेना राष्ट्रीय नहीं, बल्कि व्यावसायिक है. बीएलए ने चेतावनी दी कि बलूच भूमि पर कब्जे वाली इस सेना के खिलाफ हमले और तेज होंगे.
पाकिस्तानी सैनिकों पर किया गया ये हमला बलूचिस्तान में लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष को रेखांकित करते हैं, जहां अलगाववादी समूह स्वतंत्रता की मांग करते हैं. वे पाकिस्तानी सरकार पर राजनीतिक दमन, आर्थिक शोषण और मानवाधिकार उल्लंघन का आरोप लगाते हैं. उनका कहना है कि बलूचिस्तान प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है, लेकिन इसका लाभ केंद्र सरकार और विदेशी कंपनियां ले रही हैं, जबकि स्थानीय लोग गरीबी और उपेक्षा झेल रहे हैं. भारी सैन्य मौजूदगी को सुरक्षा के बजाय दमन का प्रतीक माना जाता है. जो स्थानीय गुस्से और विद्रोह को और हवा देता है. बलूच राष्ट्रवादियों और संघीय अधिकारियों के बीच गहराती खाई क्षेत्र में अशांति का प्रमुख कारण बनी हुई है.