Chappan Bhog: जगन्नाथ मंदिर में कैसे तैयार किया जाता है महाप्रसाद? छप्पन भोगों में क्या-क्या शामिल

छप्पन भोग में 56 तरह के उड़िया व्यंजन शामिल हैं. इनमें अदा पचेड़ी, अंबा खट्टा, चाकुली पीठा, छेनापोड़ा, दही पखाल, डालमा, मालपुआ, रसबली, सागा भाजा और संदेश जैसे स्वादिष्ट व्यंजन हैं. ये व्यंजन न केवल स्वादिष्ट हैं, बल्कि भगवान के प्रति भक्ति का प्रतीक भी हैं.

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Courtesy: Social Media

Jagannath Temple Mahaprasad: पुरी के जगन्नाथ मंदिर में चढ़ाया जाने वाला महा प्रसादम, जिसे छप्पन भोग भी कहते हैं, भक्तों के लिए आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर है. यहां भगवान जगन्नाथ को रोज़ाना 56 तरह के व्यंजन चढ़ाए जाते हैं. सृष्टिका श्रीराम ने अपनी इंस्टाग्राम रील में इस भोग के इतिहास और महत्व को बताया. 

महा प्रसादम की परंपरा भगवान कृष्ण की कृपा से शुरू हुई. श्रीराम के अनुसार, भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाकर व्रज के लोगों को बाढ़ से बचाया था. कृतज्ञता में माता यशोदा ने भगवान को हर हफ्ते आठ बार भोजन कराने का संकल्प लिया. यह परंपरा आज भी पुरी में जीवित है. भक्तों की श्रद्धा इस प्रसाद को और पवित्र बनाती है. 

छप्पन भोग की विविधता

छप्पन भोग में 56 तरह के उड़िया व्यंजन शामिल हैं. इनमें अदा पचेड़ी, अंबा खट्टा, चाकुली पीठा, छेनापोड़ा, दही पखाल, डालमा, मालपुआ, रसबली, सागा भाजा और संदेश जैसे स्वादिष्ट व्यंजन हैं. ये व्यंजन न केवल स्वादिष्ट हैं, बल्कि भगवान के प्रति भक्ति का प्रतीक भी हैं. हर व्यंजन को पारंपरिक तरीके से बनाया जाता है. जगन्नाथ मंदिर में दिन में आठ बार भोग चढ़ाया जाता है. इनमें मध्याह्न धूप (दोपहर का भोजन) और संध्या धूप (शाम का भोजन) सबसे खास हैं. भक्त मानते हैं कि महा प्रसादम का सेवन करने से भगवान का आशीर्वाद मिलता है. यह भोग भक्तों में बांटा जाता है, जो इसे पवित्र मानते हैं. 

उड़िया संस्कृति का स्वाद

छप्पन भोग में उड़िया व्यंजनों की समृद्धि झलकती है. अरिशा पिथा, कदली भजा, नदिया चटनी, और पोडा पीठा जैसे व्यंजन स्थानीय संस्कृति को दर्शाते हैं. घी चावल, खीरी और सिझा मंडा जैसे व्यंजनों का स्वाद अनूठा है. ये व्यंजन भक्तों को जोड़ते हैं और पुरी की परंपरा को जीवंत रखते हैं. महा प्रसादम सिर्फ भोजन नहीं, बल्कि भक्ति का प्रतीक है. इसे तैयार करने वाले भक्त पूरी श्रद्धा से काम करते हैं. माना जाता है कि इस प्रसाद को ग्रहण करने से मन और आत्मा को शांति मिलती है. यह भगवान और भक्तों के बीच एक पवित्र रिश्ता बनाता है. 

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