फिटनेस का नया ट्रेंड बना नॉर्डिक वॉकिंग, जोड़ों के लिए सुरक्षित

भारत में भी नॉर्डिक वॉकिंग का क्रेज बढ़ रहा है. फिटनेस प्रेमी इसे अपनाने लगे हैं. शहरों में नॉर्डिक वॉकिंग क्लब बन रहे हैं. यह स्वास्थ्य और मनोरंजन का शानदार मिश्रण है. नॉर्डिक वॉकिंग न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है.

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Courtesy: Social Media

Nordic Walking: नॉर्डिक वॉकिंग आज लोगों के बीच काफी फेमस हो रहा है. यह व्यायाम शरीर की 90% मांसपेशियों को सक्रिय करता है.  यह बिना किसी नुकसान के लगभग 40 प्रतिशत से अधिक कैलोरी बर्न करता है. हार्वर्ड मेडिकल स्कूल ने इसे फिटनेस के लिए बेहतरीन बताया है.

नॉर्डिक वॉकिंग एक अनोखा व्यायाम है. इसमें विशेष डंडों (पोल्स) का उपयोग होता है. यह क्रॉस-कंट्री स्कीइंग की तकनीक से प्रेरित है. 1930 के दशक में फिनलैंड में स्कीयरों ने इसे ऑफ-सीजन प्रशिक्षण के लिए शुरू किया. यह पैरों के साथ-साथ बाहों, कंधों और कोर को भी सक्रिय करता है.

कैसे काम करती है तकनीक?  

नॉर्डिक वॉकिंग में खास डंडे इस्तेमाल होते हैं. इनमें दस्ताने जैसी प्रणाली होती है, जो हथेली से पोल तक ताकत पहुंचाती है. दो मुख्य तकनीकें हैं. ‘सिंगल पोलिंग’ में पैरों के साथ पोल की गति समान होती है. ‘डबल पोलिंग’ में दोनों डंडों को एक साथ आगे रखकर चलते हैं. सही तकनीक से अधिक लाभ मिलता है. नॉर्डिक वॉकिंग पूरे शरीर का व्यायाम है. यह 18-67% अधिक कैलोरी बर्न करती है. हार्वर्ड के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. आरोन बैगिश कहते हैं कि यह 80-90% मांसपेशियों को सक्रिय करता है. यह वजन कम करने, कोलेस्ट्रॉल, अवसाद और पुराने दर्द को कम करने में मदद करता है. यह हृदय स्वास्थ्य और मांसपेशियों की ताकत बढ़ाता है.

जोड़ों के लिए सुरक्षित  

नॉर्डिक वॉकिंग जोड़ों पर कम दबाव डालती है. डंडों से शरीर का वजन बंट जाता है. यह बुजुर्गों, मधुमेह रोगियों और चोट से उबर रहे लोगों के लिए आदर्श है. स्तन कैंसर से बचे लोग और पार्किंसंस रोगी भी इससे लाभ उठा सकते हैं. यह कम प्रभाव वाला पुनर्वास व्यायाम है. नॉर्डिक वॉकिंग की खासियत यह है कि इसे कहीं भी किया जा सकता है. पार्क, सड़क या समुद्र तट, बस चलने की जगह चाहिए. सभी एज ग्रुप के लिए सही है. हल्के डंडों और सही तकनीक से कोई भी इसे शुरू कर सकता है.

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