सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान में लिया अरावली मामला, माइनिंग पर सख्ती के संकेत

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों की परिभाषा में हालिया बदलाव से उत्पन्न चिंताओं पर खुद संज्ञान लेते हुए मामले की सुनवाई का फैसला किया है.

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Courtesy: X (@IndiaAesthetica)

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों की परिभाषा में हालिया बदलाव से उत्पन्न चिंताओं पर खुद संज्ञान लेते हुए मामले की सुनवाई का फैसला किया है. पर्यावरणविदों और नागरिकों का डर है कि यह बदलाव संरक्षित क्षेत्रों में अंधाधुंध खनन का द्वार खोल सकता है, जिससे देश की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक को अपूरणीय क्षति पहुंचेगी. कोर्ट का यह कदम पर्यावरण संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है.

मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ सोमवार को इस मामले की सुनवाई करेगी. जिसमें जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस एजी मसीह भी शामिल होंगे. पीठ अरावली क्षेत्र में खनन गतिविधियों तथा उनके पर्यावरणीय प्रभाव की गहन जांच करेगी.

अरावली का पर्यावरणीय महत्व

अरावली पर्वत श्रृंखला गुजरात से दिल्ली-एनसीआर तक फैली हुई है और पर्यावरण संतुलन की रीढ़ मानी जाती है. ये पहाड़ियां थार मरुस्थल के विस्तार को रोकती हैं, जैव विविधता को आश्रय देती हैं तथा भूजल स्तर को रिचार्ज करने में अहम भूमिका निभाती हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, इनका क्षरण पूरे उत्तर भारत के जल संकट और मरुस्थलीकरण को बढ़ावा दे सकता है. पर्यावरण समूहों का कहना है कि परिभाषा कमजोर होने से पहले संरक्षित समझे जाने वाले क्षेत्रों में खनन और निर्माण की छूट मिल सकती है, जिससे नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में पड़ जाएगा.

राजनीतिक विवाद और विरोध

परिभाषा बदलाव के बाद कई क्षेत्रों में प्रदर्शन हुए हैं. विपक्षी दल कांग्रेस ने आरोप लगाया कि यह कदम बड़े खनन हितों को फायदा पहुंचाने के लिए उठाया गया. हालांकि केंद्र सरकार ने इन आरोपों का खंडन करते हुए स्पष्ट किया कि अरावली को कोई खतरा नहीं है और उसके सभी कदम संरक्षण के लिए हैं. सरकार ने सभी राज्यों को अरावली क्षेत्र में नए खनन पट्टे जारी करने पर पूर्ण रोक लगा दी है. मौजूदा खदानों को भी सुप्रीम कोर्ट के पूर्व आदेशों के तहत सख्ती से नियंत्रित करने के निर्देश दिए गए हैं.

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (ICFRE) को अतिरिक्त क्षेत्रों की पहचान करने का काम सौंपा है, जहां खनन पूरी तरह प्रतिबंधित होना चाहिए. यह पहचान भूवैज्ञानिक, पारिस्थितिक और भू-आकृति अध्ययनों पर आधारित होगी. ICFRE से पूरे अरावली क्षेत्र के लिए विज्ञान-आधारित व्यापक प्रबंधन योजना तैयार करने को भी कहा गया है.

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