Chhath Puja kharna Vrat: छठ महापर्व का त्योहार मनाया जा रहा है. आज छठ पूजा का दूसरा दिन है. इस दिन को खरना या फिर लोहंडा भी कहा जाता है. छठ के दूसरे दिन व्रती महिलाएं शाम में अपने पूजा घर में दीप जला कर पूजा करती हैं. इस पूजा में परिवार के सभी लोग हिस्सा लेते हैं. छोटा-बड़े सभी लोग व्रति महिलाओं का पैर छूते हैं और उनसे अपने सफलता का आर्शिवाद लेते हैं.
छठ के खरना के दिन घर के अंदर पूजा की जाती है. जिसमें परिवार के सभी लोग शामिल होते हैं. इस दिन आग में हुमाद अर्पित करने की परंपरा है. जिसके बाद जले हुए हुमाद के राख को सर पर टीका के रूप में लगाया जाता है. माना जाता है यह टीका आपके सभी परेशानियों को खत्म कर देता है. इस पूजा में सबसे खास प्रसाद होता है. जिसे केवल छठ के दिन ही बनाया जाता है.
ऐसे तैयार होता है खीर का प्रसाद
खरना के दिन शाम में पूजा करने के बाद लोगों में महाप्रसाद बाटा जाता है. इस प्रसाद को दूध, गुड़ और चावल से तैयार किया जाता है. तैयार किया गया खीर हर दिन से काफी अलग होता है. क्योंकि इसमें जिस चावल का उपयोग किया जाता है उसे बहुत ही शुद्धता के साथ साफ किया जाता है. व्रती महिलाएं घंटो बैठकर इसमें पड़े एक छोटे से भी छोटे कंकड़ को निकालती हैं. इसके बाद इसे धोया जाता है.
साथ ही जो दूध इसमें इस्तेमाल किया जाता है वो गाय का शुद्ध दुध होता है. गुड़ की शुद्धता पड़ भी काफी ध्यान दिया जाता है. इसके बाद इस खीर को आमतौर पर मिट्टी से बने चूलहे पर पकाया जाता है. खीर तैयार होने के बाद सबसे पहले इसकी पूजा की जाती है. छठी मैया को समर्पित किया जाता है. इसके बाद लोग इसे प्रसाद के रुप में लेते हैं. माना जाता है इस खास खीर के प्रसाद के ग्रहण करने से आप निरोग और सफल होते हैं.
इसके बाद शुरू होगा निर्जला उपवास
आज के दिन खीर के प्रसाद को छठी मैया को भोग लगाने के बाद ही महिलाएं 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू करती हैं. आज के दिन महिलाएं छठ पूजा का प्रसाद ठेकुआ भी तैयार करती हैं. जिसे गेहूं का आटा, घी और चीनी-गुड़ से तैयार किया जाता है. शाम के समय में खीर का प्रसाद खाने आसपास के लोग भी आते हैं इसके लिए किसी को आंत्रित नहीं किया जाता है. लोग खुद प्रसाद मांगने आते हैं. हालांकि उनके घर में भी छठ पूजा होता रहता है इस बाद भी इस विशेष प्रसाद को हर घर से मांग कर खाते हैं. छठ के त्योहार में लोग अपने अंदर के सभी अहंकार को त्यागते हैं और अपने ये तीन दिन प्रकृति को संपृति करते हैं.