इस दिन मनाया जाएगा पर्युषण पर्व, जानें महत्व और इससे जुड़े सारे नियम

पर्युषण 21 अगस्त 2025 से शुरू होकर 28 अगस्त को संवत्सरी के साथ समाप्त होगा. वहीं, दिगंबर समुदाय का दास लक्षण पर्व 22 अगस्त से शुरू होकर दस दिनों तक चलेगा.

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Courtesy: Social Media

Paryushan 2025: जैन समुदाय का सबसे पवित्र त्योहार, पर्युषण पर्व, आत्मनिरीक्षण और क्षमा का अनूठा अवसर है. यह पर्व जैन धर्म के मूल सिद्धांतों सत्य, तप और अहिंसा पर केंद्रित है. यह समय भक्तों को अपने मन को शुद्ध करने और शांति की राह पर चलने का मौका देता है. 

पर्युषण केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आध्यात्मिक शुद्धि का समय है. यह पर्व लोगों को अपनी दिनचर्या से हटकर अपने मूल्यों से जुड़ने का अवसर देता है. क्षमा, त्याग और आत्म-शुद्धि इस पर्व के केंद्र में हैं. यह भक्तों को सिखाता है कि वे अपने कर्मों का मूल्यांकन करें और जीवन में विनम्रता अपनाएँ. श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराएँ इस पर्व को पूरे उत्साह के साथ मनाती हैं.

कैसे मनाया जाता है पर्व?

श्वेतांबर समुदाय में पर्युषण 21 अगस्त 2025 से शुरू होकर 28 अगस्त को संवत्सरी के साथ समाप्त होगा. वहीं, दिगंबर समुदाय का दास लक्षण पर्व 22 अगस्त से शुरू होकर दस दिनों तक चलेगा. इस दौरान सत्य, विनम्रता और क्षमा जैसे दस धर्मों पर विशेष ध्यान दिया जाता है. दोनों परंपराएं इस पर्व को आत्मिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण मानती हैं. पर्युषण पर्व के दौरान कई अनुष्ठान किए जाते हैं. प्रतिक्रमण इस पर्व का मुख्य हिस्सा है, जिसमें भक्त अपने विचारों, शब्दों और कर्मों की समीक्षा करते हैं. वे ईश्वर और दूसरों से क्षमा मांगते हैं. पवित्र ग्रंथों का पाठ भी महत्वपूर्ण है. भक्त जैन आगम और भगवान महावीर की शिक्षाओं का अध्ययन करते हैं. उपवास इस पर्व का अभिन्न हिस्सा है. कई लोग पूर्ण या आंशिक उपवास करते हैं. ध्यान और मंत्र जाप से भक्त अपनी मानसिक शुद्धि पर ध्यान केंद्रित करते हैं. ये अनुष्ठान आत्मिक शांति और सचेतनता को बढ़ावा देते हैं.

सादा और सात्विक से शरीर की शुद्धता

पर्युषण में भोजन अहिंसा के सिद्धांत पर आधारित होता है. जड़ वाली सब्जियों से परहेज किया जाता है, क्योंकि इनसे छोटे जीवों को नुकसान पहुंच सकता है. भोजन सादा और सात्विक होता है, जो मन और शरीर को शुद्ध करता है. साबूदाना खिचड़ी, कुट्टू के पैनकेक, दाल ढोकली और जैन-शैली का शाही टुकड़ा जैसे व्यंजन उपवास के लिए उपयुक्त हैं. ये व्यंजन स्वादिष्ट होने के साथ-साथ जैन धर्म की मान्यताओं के अनुरूप हैं. पर्युषण के समापन पर महावीर जयंती मनाई जाती है. यह भगवान महावीर के जन्म का प्रतीक है, जिनकी शिक्षाएं जैन धर्म का आधार हैं. इस दिन भक्त उनकी अहिंसा, सत्य और करुणा की शिक्षाओं का स्मरण करते हैं. यह दिन आध्यात्मिक उत्साह और भक्ति से भरा होता है.

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