उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय में स्थित बद्रीनाथ मंदिर भारत का एक प्रमुख आध्यात्मिक केंद्र है. भगवान विष्णु को समर्पित यह पवित्र धाम हर साल लाखों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है. बर्फ से ढकी शांत घाटियाँ, घुमावदार पहाड़ी रास्ते और प्रकृति का भव्य रूप मिलकर इस स्थान को और भी खास बनाते हैं.
मंदिर केवल धार्मिक आस्था का ही प्रतीक नहीं है, बल्कि यह पौराणिक कथाओं, संस्कृति और प्रकृति की मनमोहक सुंदरता का अनोखा मिश्रण भी है.
बद्रीनाथ मंदिर का इतिहास हिंदू पौराणिक परंपराओं से सीधे जुड़ा हुआ है. मान्यता है कि करीब हज़ार साल पहले आदि शंकराचार्य ने इस धाम की स्थापना की थी और यहां पूजा-पाठ की परंपरा को दोबारा जीवंत किया. यह मंदिर समुद्र तल से 3,133 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है, जहां भगवान विष्णु ने कठोर तपस्या की थी. कहानी के अनुसार देवी लक्ष्मी ने बद्री वृक्ष का रूप धारण कर विष्णु जी को कठोर सर्दी से बचाया था. इसी वजह से इस धाम को ‘बदरीनारायण’ कहा जाता है.
चार धामों में से एक और छोटे चार धाम यात्रा का मुख्य हिस्सा होने के कारण बद्रीनाथ का धार्मिक महत्व अत्यधिक है. श्रद्धालुओं का विश्वास है कि यहां दर्शन करने से पिछले कर्मों का बोझ कम होता है और जीवन में आध्यात्मिक शांति प्राप्त होती है. अलकनंदा नदी का शांत प्रवाह, रंगीन मंदिर परिसर और ऊँचे पर्वतों की ऊर्जा यहां आने वालों को अद्भुत अनुभव प्रदान करती है.
हवाई मार्ग
सबसे नजदीकी एयरपोर्ट देहरादून का जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है, जो लगभग 310 किलोमीटर दूर है. यहां से टैक्सी और बस सेवाएं आसानी से उपलब्ध हैं.
रेल मार्ग
ऋषिकेश निकटतम रेलवे स्टेशन है. वहां से आगे की यात्रा सड़क मार्ग से करनी पड़ती है.
सड़क मार्ग
बद्रीनाथ तक मोटरेबल सड़कें बनी हुई हैं. हरिद्वार, ऋषिकेश और देहरादून से नियमित बसें और टैक्सियाँ मिल जाती हैं. रास्ते में हिमालय, नदियों और घाटियों की खूबसूरत झलकियाँ यात्रा को यादगार बनाती हैं. तीर्थ सीजन के दौरान हेलीकॉप्टर सेवा भी एक विकल्प है.