9 जुलाई को भारत बंद का ऐलान! देशव्यापी विरोध प्रदर्शन किसने बुलाया और क्यों?

यूनियनों ने 17 मांगों का चार्टर पेश किया है. इनमें चार श्रम संहिताओं को रद्द करना, निजीकरण पर रोक, न्यूनतम वेतन की गारंटी और ठेका प्रथा खत्म करना शामिल है. वे शिक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण में अधिक निवेश चाहते हैं. भारतीय श्रम सम्मेलन को फिर से शुरू करने की मांग भी है.

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Courtesy: Social Media

Bharat Bandh: केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने राष्ट्रव्यापी भारत बंद का आह्वान किया है. किसानों ने भी इसका समर्थन किया है. यह बंद केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ है. यूनियनों का कहना है कि सरकार के सुधार श्रमिकों और किसानों के हितों को नुकसान पहुंचा रहे हैं. 

10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों का संयुक्त मंच इस बंद का नेतृत्व कर रहा है. इसमें HMS, SEWA जैसे संगठन शामिल हैं. यूनियनों का आरोप है कि सरकार के नए श्रम संहिताएं श्रमिकों की सुरक्षा कमजोर कर रही हैं. ये हड़ताल को कठिन बनाते हैं और यूनियनों को कमजोर करते हैं. साथ ही, सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण और बेरोजगारी पर भी सवाल उठाए गए हैं.

क्या हैं प्रमुख मांगें?  

यूनियनों ने 17 मांगों का चार्टर पेश किया है. इनमें चार श्रम संहिताओं को रद्द करना, निजीकरण पर रोक, न्यूनतम वेतन की गारंटी और ठेका प्रथा खत्म करना शामिल है. वे शिक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण में अधिक निवेश चाहते हैं. भारतीय श्रम सम्मेलन को फिर से शुरू करने की मांग भी है. यूनियनों का कहना है कि सरकार ने बातचीत के रास्ते बंद कर दिए हैं. हड़ताल से कई क्षेत्र प्रभावित होंगे. सार्वजनिक बैंक, डाक सेवाएं, और राज्य बस सेवाएं ठप हो सकती हैं. कोयला, खनन, इस्पात, बिजली और तेल जैसे क्षेत्रों में भी व्यवधान होगा. पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु और पंजाब में असर ज्यादा होगा. रेलवे पर सीधा प्रभाव नहीं होगा, लेकिन सड़क अवरोध से देरी हो सकती है. अस्पताल और आपातकालीन सेवाएं चालू रहेंगी.

किसान क्यों साथ दे रहे हैं?  

संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) ने बंद को समर्थन दिया है. पंजाब, हरियाणा, बिहार और कर्नाटक में किसान विरोध करेंगे. उनकी मांगों में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी, उर्वरक सब्सिडी और मनरेगा में बढ़ोतरी शामिल है. वे कृषि बाजारों के निजीकरण का भी विरोध कर रहे हैं. किसानों का कहना है कि उनकी लागत बढ़ रही है, लेकिन आय स्थिर है. यूनियनों का कहना है कि बेरोजगारी और महंगाई बढ़ रही है. CMIE के अनुसार, युवा बेरोजगारी 17% के करीब है.

दाल और सब्जियों की कीमतें 8% से ज्यादा बढ़ी हैं. मजदूरी स्थिर है. रक्षा और ऊर्जा जैसे क्षेत्रों का निजीकरण हो रहा है. कल्याण योजनाओं में कटौती से असंतोष बढ़ा है. श्रम मंत्रालय ने अभी कोई बयान नहीं दिया. सरकार का कहना है कि श्रम संहिताएं व्यापार को आसान बनाएंगी. लेकिन यूनियनों का आरोप है कि बिना चर्चा के सुधार थोपे जा रहे हैं. कुछ राज्यों में ESMA लागू हो सकता है, लेकिन अभी कोई आदेश नहीं आया.

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