सुप्रीम कोर्ट से जस्टिस यशवंत वर्मा को बड़ा झटका, CJI की बर्खास्तगी की सिफारिश के खिलाफ याचिका खारिज

जस्टिस वर्मा ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजी गई उस सिफारिश को भी चुनौती दी थी जिसमें उन्हें पद से हटाने की मांग की गई थी. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह याचिका विचारणीय नहीं है.

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Courtesy: Social Media

Justice Yashwant Varma: सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस यशवंत वर्मा को बड़ा झटका दिया है. सर्वोच्च न्यायालय ने गुरवार को नकदी बरामदगी मामले में जांच रिपोर्ट को चुनौती देने वाली उनकी याचिका को खारिज कर दिया. जस्टिस न्यायमूर्ति ने अपने आवास से मिली नकदी बरामदगी की जांच करने वाली जांच समिति की रिपोर्ट को अमान्य ठहराने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. हालांकि इसमें उनको सफलता नहीं मिली है. 

जस्टिस वर्मा ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजी गई उस सिफारिश को भी चुनौती दी थी जिसमें उन्हें पद से हटाने की मांग की गई थी. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह याचिका विचारणीय नहीं है.

प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को पत्र

सुप्रीम कोर्ट ने आज इस मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि मुख्य न्यायाधीश और आंतरिक समिति ने फोटो और वीडियो अपलोड करने के अलावा पूरी प्रक्रिया का पूरी ईमानदारी से पालन किया और हमने कहा है कि इसकी आवश्यकता नहीं थी. लेकिन इस पर कोई असर नहीं हुआ क्योंकि आपने तब इसे चुनौती नहीं दी थी. न्यायमूर्ति एजी मेशी और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा कि हमने माना है कि प्रधान न्यायाधीश द्वारा प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को पत्र भेजना असंवैधानिक नहीं था. हमने कुछ टिप्पणियां की हैं, जिनके तहत हमने भविष्य में जरूरत पड़ने पर आपके लिए कार्यवाही शुरू करने का विकल्प खुला रखा है. इस फैसले से संसद के लिए न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही आगे बढ़ाने का रास्ता साफ हो गया है, जिन्होंने भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश द्वारा राष्ट्रपति को उनके खिलाफ महाभियोग चलाने की सिफारिश का भी विरोध किया था.

क्या है पूरा मामला

न्यायमूर्ति वर्मा के आवास में लगी आग में दमकलकर्मियों को बेहिसाब नकदी मिली. बाद में सामने आए एक वीडियो में आग में नोटों के बंडल जलते हुए दिखाई दे रहे थे. इस घटना के बाद न्यायमूर्ति वर्मा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, जिनका उन्होंने खंडन करते हुए दावा किया कि यह उन्हें फंसाने की साजिश थी. इसके जवाब में, भारत के मुख्य न्यायाधीश ने एक आंतरिक जाँच का आदेश दिया और मामले की जांच के लिए 22 मार्च को एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया. आरोपों के बाद, न्यायमूर्ति वर्मा को उनकी मूल अदालत वापस भेज दिया गया.

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