'क्या समय सीमा तय की जा सकती है?', सुप्रीम कोर्ट के समय सीमा संबंधी फैसले पर राष्ट्रपति मुर्मू ने उठाए सवाल

राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि संविधान में राज्यपाल या राष्ट्रपति के लिए विधेयकों पर कार्रवाई की कोई समयसीमा नहीं है. अनुच्छेद 200 राज्यपाल को विधेयक मंजूर करने, रोकने या राष्ट्रपति के पास भेजने का अधिकार देता है. इसमें समयसीमा का जिक्र नहीं है.

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Courtesy: Social Media

President Droupadi Murmu: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कड़ा ऐतराज जताया है. जिसे कोर्ट द्वारा 8 अप्रैल को सुनाया गया था. इस फैसले में राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए राज्य विधेयकों पर कार्रवाई की समयसीमा तय की गई थी. राष्ट्रपति ने इस निर्देश की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है. 

राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि संविधान में राज्यपाल या राष्ट्रपति के लिए विधेयकों पर कार्रवाई की कोई समयसीमा नहीं है. अनुच्छेद 200 राज्यपाल को विधेयक मंजूर करने, रोकने या राष्ट्रपति के पास भेजने का अधिकार देता है. इसमें समयसीमा का जिक्र नहीं है. अनुच्छेद 201 भी राष्ट्रपति के लिए ऐसी कोई सीमा तय नहीं करता. राष्ट्रपति ने जोर दिया कि ये शक्तियां संघवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे संवैधानिक मूल्यों से जुड़ी हैं.

विवेकाधीन शक्तियों पर बहस

राष्ट्रपति ने सवाल उठाया कि क्या राज्यपाल और राष्ट्रपति की विवेकाधीन शक्तियां न्यायिक समीक्षा के दायरे में आती हैं. उन्होंने पूछा कि क्या कोर्ट इन शक्तियों के लिए समयसीमा या प्रक्रिया तय कर सकता है. अनुच्छेद 361 के तहत राज्यपाल के कार्यों की न्यायिक जांच पर भी सवाल उठाया गया. राष्ट्रपति ने कहा कि मान्य सहमति की अवधारणा संवैधानिक ढांचे के खिलाफ है.

राष्ट्रपति ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति की सहमति की न्यायिक समीक्षा पर स्पष्ट नहीं हैं. राज्य अक्सर अनुच्छेद 32 के तहत कोर्ट का रुख करते हैं, जबकि संघीय सवाल अनुच्छेद 131 के तहत उठाए जाने चाहिए. अनुच्छेद 142 के दायरे पर भी सवाल उठाए गए. राष्ट्रपति ने पूछा कि क्या कोर्ट इस अनुच्छेद के जरिए संवैधानिक शक्तियों को बदल सकता है.

महत्वपूर्ण सवालों का संदर्भ

राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से कई सवालों पर राय मांगी है. इनमें शामिल हैं राज्यपाल के पास अनुच्छेद 200 के तहत क्या विकल्प हैं? क्या वे मंत्रिपरिषद की सलाह मानने को बाध्य हैं? क्या राष्ट्रपति का विवेक अनुच्छेद 201 के तहत समीक्षा योग्य है? क्या कोर्ट समयसीमा तय कर सकता है? क्या अनुच्छेद 143 के तहत कोर्ट की राय लेना जरूरी है? 

राष्ट्रपति मुर्मू ने इन सवालों के जरिए कार्यकारी और न्यायिक शक्तियों की सीमाओं पर स्पष्टता मांगी है. उन्होंने राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों में न्यायिक व्याख्या के महत्व को रेखांकित किया. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की राय संवैधानिक ढांचे को मजबूत करने में अहम होगी. देश की नजरें इस कानूनी बहस पर टिकी हैं.

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